Sunday, November 22, 2009
धर्म धारण किया जाता है
धर्म तो हर परिस्थिति में एक ही रहता है । देश काल व्यक्ति और परिस्थिति के अनुसार कर्म बदलता रहता है । जैसे एक बिद्यार्थी का धर्म है केवल बिद्या अध्ययन जबकि दूसरी ओर उसी उम्र के गरीब मजदुर बच्चे का धर्म है म्हणत मजदूरी करके अपने छोटे भाई बहिन का पेट भरना । यहाँ धर्म नही बदला है केवल कर्म ही बदला है । दोनों ही अपना अपना धर्म निभा रहे है ।
एक और उदाहरन देखिये एक डाकू के डर से भागता हुआ एक व्यापारी साधू की jhopadi में आ कर छुप जाता है उसे विश्वास था की साधू डाकू से उसके प्राणों की रक्षा करेगा । तभी डाकू भागता हुआ आता है और साधू से पूछता है की क्या यहाँ पर कोई व्यक्ति आया है
मैंने नही देखा , साधू ने जवाब दिया
डाकू वहां से आगे चला जाता है और इस प्रकार उस व्यक्ति की जान बच जाती है ।
यहाँ पर किसी व्यक्ति की जान बचाना साधू का धर्म है उसने झूठ बोल कर भी अपने साधू धर्म की रक्षा की है । इस पर कोई बहस नही हो सकती है
Friday, November 20, 2009
युवा शक्ति को समर्पित
युवा शब्द ही अपने आप में उर्जा से भरा हुआ है जब व्यक्ति युवा होता है, तब उसे साडी दुनिया एक तिनके जैसी हलकी नजर आती है, पहाड़ सी समस्या भी छोटी नजर आती है , उसका मन विश्वास से भरा होता है ।
बस उसके अन्दर की उर्जा को दिशा देने की जरुरत होती है ।
बहुत पाहिले की बात होती थी की पन्द्रह साल की उम्र बाल विवाह होते थे और जब तक युवा बीस साल का होता था तो उसके दो, तीन बच्चे हो जाते थे और उसका सारा ध्यान अपने परिवार की ओर केंद्रित हो जाता था । इस प्रकार उसकी उर्जा बाँट जाती थी ।
परन्तु अब समय बदल गया है , आज शादी तीस साल के बाद होती है , तो जो बीस से तीस के बीच कासमय है वाही समय सबसे ज्यादा उर्जावान होता है इस समय युवाओं को कोई नाकोई दिशा की जरुरत होती है जहाँ वह अपनी उर्जा को खर्च कर सकें । इस समय उनके अन्दर एक जोश होता है,उमंग होती है ,उनके अंदर फौलाद की ताकत होती है , इरादों ko पुरा करनेका विश्वास होता है , कुछ करने का जूनून होता है आपने देखा होगा की इस समय कुछ बच्चे अपने कैरियर की ओर मुद जाते है औरअपनी साडी शक्ति अपना लक्ष्य पाने में लगा देते है , कुछ राजनैतिक हाथों में पड़ कर मुद जाते है कुछ ग़लत आदतों में पड़ कर उधर मुद जाते है ।कुछ स्वार्थी तत्व उनका गलत स्तेमाल भी करते है और सबसे बड़ी बात ये है की ये जिस काम को हाथ में लेते है, उसे पूरी क्षमता और पूरी ईमानदारी से अपने लक्ष्य तक पहुंचाते है । इनकी निर्णायक क्षमता त्वरित होती है । किसी भी देश की सेना में युवा का महत्व इसी लिए होता है की वह आगे बदना जानता है ।
कहने का तात्पर्य यह है की इस समय इन युवाओं को उचित मार्ग दर्शन की जरुरत होती है । हम सभी को युवा शक्ति को पहिचानना होगा , उनका विश्वास करना होगा , उनको जिम्मेदारी देकर उनको आगे करके हमें उनके पीछे रह कर उनकेसहयोग करना होगा । मेरा विश्वास है की ये बहुत अच्छे नेता , मार्ग दर्शक , बिचारक , देश प्रेमी , रक्षक , देश को चलाने वाले , और बहुत अच्छे नागरिक बन सकते है जिस पर हम सभी को गर्व होगा ।
वह दिन दूर नही जब इस देश के हेर क्षेत्र में युवाओं की भागी दरी होगी ।
युवा शक्ति को समर्पित जय माता दी
Monday, November 2, 2009
इश्वर की माया
जीवन में आने वाली परेशानियाँ हमारी परीक्षा के लिए आती है जो परीक्षा पास कर लेता है वह समझो उसके समीप आता जाता है । आप यह भी जानो की जिस पर भगवन दया करते है उसी की परीक्षा भी लेते है । कुंती ने भगवान से साडी जिन्दगी का कष्ट माँगा था ताकि वह हमेशा भगवन को याद रखे .और भगवन भी उसकी खबर रखे रहे । परेशानी में ही सच्ची पर्व्ख होतीहै चाहे वह मित्र हो , पत्नी हो , भाई हो या एनी कोई भी ।
इसीलिए हमको जीवन में आने वाली परेशानियों से डरना नही चाहिए बल्कि उनका डट कर मुकाबला करना चाहिए .
Wednesday, October 14, 2009
Thursday, October 8, 2009
करवा चौथ पर उपहार
अलग अलग प्रान्तों में यह त्यौहार कुछ अलग तरीके से मनाया जाता है परन्तु उसका भावः एक ही रहता है ।
Tuesday, October 6, 2009
करवा चौथ का व्रत
यह व्रत सत्यवान की लम्बी आयु के लिए सावित्री भी ने किया था , अपने पति की रोग मुक्ति के लिए यह व्रत रानी मदालसा ने भी किया था । अपनेपति को कुष्टरोग से मुक्ति दिलाने के लिए यह व्रत सती नर्मदा ने भी किया था जो महा सती अनुसुइया की सहेली थी उनहोंने ही यह व्रत करने की सलाह दी थी। रानी चंचला का उनके पति ने परित्याग कर दिया था फ़िर सप्त ऋषि कहने का तात्पर्य है की इस व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है ।
व्रत का विधान --- (0इस दिन स्र्तियों को सोलह शंगार करके तैयार hona चाहिए )-दो करवा या लोटा , एक थाली , उसमे पूजा की सारीसामग्री, सुहाग का सारा सामान , फ़िर शाम को घर के आँगन या छत पर आता से चौक पुर कर उसमे दोनों करवा को रखकर एक करवा में जल भरे और दुसरे करवा मेंलड्डू , भजिया ,चावल , पुडी , सबकुछ से भरना चाहिए फ़िर फ़िर गौरी माता और गणेश जी की की पूजा करना चाहिए फ़िर चाँद निकलने पर एक कटोरी में दूध लेकर दोनों हाथ से चाँद को दूध के छींटे दे और ये बोले की चन्द्र देव अर्ध लो, हमको सुहाग दो । एसा पञ्च बार करे फ़िरपानी से जल का अर्ध दे और एक छन्नी में जलता हुआ दीपक रखकर उसमे से चाँद के दर्शन करे और उसी छन्नी में से अपनेपति के दर्शन करे उनके टिका लगाये , पुर छुए और उनके द्वारा अपनी मांग में सिन्दूर लगवाये फ़िर पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलेफ़िर पति की माँ यानि की सासु माँ को पति के साथ में जो भी भेंट आप दे सकते हो जरुर दे चाहे वह एककपड़ा ही क्यों नहो इस व्रत में सासु माँ को भेंट देने का बहुत महत्व है व्रत तभी पूर्ण होता है । माँ को भेट देते समय जब आप पैर पड़ने को झुकते है तब माँ अपना आचल बेटे बहु के सर पर रखकर उनको सदा सुहागन रहने का आशर्वाद देती है .इसके बाद सभी मिल जुल कर कहना पीना खरे है ।
Wednesday, September 9, 2009
Tuesday, June 23, 2009
मुख्य त्यौहार
होली ----- यह रंगों का त्यौहार है जो मार्च माह में आता है । इस दिन हम आपसी बुराईको भूल कर आपस में गले मिलते है । यह आपसी भाई चारा और बुराई पर सच्चाई की जीत का त्यौहार है। यह शूद्रों का पर्व मन जाता है ।
गुडी पडवा ---यह पर्व चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की परमा यानि की प्रथम दिन मनाया जाता है ।
कहा जाता है की इस दिन ब्रह्म जी ने संसार की रचना की थी । लोग एक दुसरे को नव वर्ष की बधाई देते है ।
रक्षा बंधन ----यह पर्व अगस्त मास में श्रावण मास ki पूर्णिमा को मनाया जाता है । यह भाई बहिन का त्यौहार है इस दिन बहिन भाई की कलाई पर रखी बंधती है और भाई जीवन भर उसकी रक्षा का बचन देता है । ब्रह्मण लोग भी रक्षा सूत्र बंधते हैं । इसी लिए यह मुख्यतः ब्राह्मणों का पर्व है ।
दशहरा ---- यह सच्चाई की जीत का त्यौहार है यह मुख्यत क्षत्रियों का पर्व है । इस दिन वे अपने हथियारों का पूजन प्रदर्शन करते हैं ।
दीपावली ----इस दिन हम सभी अपने घरों की सफाई करते है और दीपमाला से घर को रोशन करते है कहा जाता है की माता लक्ष्मी जी आज के दिन घर पर आती है । इसी लिए हम गणेश , लक्ष्मी जी और माता सरस्वती जी की पूजा करते है आज ही के दिन राम जी वनवास से घर अयोध्या वापिस आए थे । वेसे यह पर्व दीवाली से दो दिन पहिले यानि की धन तेरस , नर्क चौदस , दीवाली , अन्नकूट और पांचवे दिन भाई दोजके रूप में मनाया जाता है । इस दिन अपने बही खाता का पूजन बैश्य लोग करते है । इसी लिए इसे बैश्योंका पर्व कहते है । यह नवम्बर मास में मनाया जाता है ।
Sunday, June 21, 2009
हमारे मुख्य त्यौहार
Thursday, June 18, 2009
भारत की झांकी
जिस प्रकार वह इश्वर प्रकृति के हर रूप में है ठीक उसी प्रकार भारत देश अपने विभिन्न रूप से हर भारत वासी में है । यही हमारा भारत है, जो एक गुलदस्ता है , एक गागर में भरा हुआ सागर है ।
जिस पर हर भारत वासी को गर्व है
Tuesday, June 16, 2009
हमारे द्वारा दिया गया अन्न जल पितरो को कैसे मिलता है .
इन प्रश्नों के उत्तर मार्कण्डेय पुराण ,वायु पुराण , श्राद्ध कल्पलता , और मनु स्मृति में सुस्पष्ट उत्तर दिय गया है की नाम गोत्र के सहारेविशवदेवएवं अग्निश्वत आदि दिव्य पितृ , हव्य कव्य को पितरो को प्राप्त करा देते है ।
ध्यान देने योग्य बात है ---- यदि पिता या कोई पूर्वज देव योनी को प्राप्त हो गया है तो आपके द्वारा दिया गया अन्न उसे वह पर अमृत होकर प्राप्त हो जाता है । मनुष्य योनी में अन्नके रूप में, आध्यत्मिक उन्नति के रूप में ,पशु योनी में तरण के रूप में, नाग योनी में वायु रूप में , यक्ष योनी में पान के रूप में , तथा एनी योनी में भी उसका भोज्य पदार्थ बनकर उसे प्राप्त हो जाता है । नम गोत्र उचित संकल्प और श्राद्ध से दिया गयापदार्थ भक्ति पूर्वक उच्चारित मन्त्र उनको पहुंचा देता है । जिव चाहे अनेको योनियों को पारकर गया हो तो भी तृप्ति उस तक पहुंच ही जाती है ।
मनु स्मृति में लिखा है ---की पितृ अंतरिक्ष में वायवीय शरीर से रहते है परन्तु पितृ पक्ष में ये मनोजीवी हो जाते है और स्मरण मात्र से ही श्राद्ध देश में आ जाते है और ब्राह्मण के मुख से भोजन कर तृप्त हो जाते है ।अगर आप श्राद्ध करने में समर्थ नही है तो कमसे कम गे को घास ही खिला दे पितरो के नाम पर .पर करे जरुर ।
जबाली सत्कम में -- महर्षि जबाली ने लिख है की जो पितृ पक्ष में पितरो को तृप्त करते है उन्हें पुत्र , आयु, आरोग्य , अतुल एश्वर्यऔर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
तीर्थ भूमि पर श्राद्ध ---पितरो में मिलन के बाद सरे पितरो का श्राद्धपितृ पक्ष में गया जाकर विधि विधान से जरुर करनाचाहिए ।
श्री मद देवी भागवत में लिखा है की जो पुत्र अपने पितरो को गया में पिंड दान देता है , उसी का पुत्रत्व सार्थक है ।
बदरी नारायण क्षेत्र में "ब्रह्म कपाली " नामक सिहं पर भीपिंड दान का बडा महत्व है । गया में पिंड दान के बादयहाँ पिंड दान करना चाहिए । पुष्कर तीर्थ में भी पिंड दान का महत्व है ।
सभी तीर्थों में जाकर पितरो को तर्पण करना चाहिए .
श्राद्ध में चांदी का बहुत महत्व है अगर चांदी के पात्र दे केवल जल मात्र ही दिया पितरो को दिया जाए तो वो अक्षय तृप्ति करक होता है। अथ हो सके तो चांदी का पात्र उपयोग में ले ।
चांदी का उद्भव शिव जी के नेत्रों से हुआ है अथ वः पवित्र है और देवो तथा पितरो को प्रिय है । ९(मत्स्य पुराण से ) ॐ जय माँ सोलह संस्कार पुरे हुए ।
श्राद्ध में लोहे का पात्र मना है ।
Monday, June 15, 2009
मेलन यानि की मृत प्राणी को पितरों में मिलाना
अतः मृतक को श्राद्ध द्वारा पिता में , पितामह में , फ़िर प्रपितामह में मेलन कराया जाता है ।
अगर मृतक स्त्री है और उसका पति जीवित है , तोउसका मेलन सास , परसासऔर वृद्ध परसास में होगा ।
अगर पति जीवित नही है तो स्त्री प्रेत का मेलन पति , श्वसुर और प्रश्वसुर में होगा ।
साधारण श्राद्ध ------हर किसी को श्राद्ध करना आवश्यक है । हमारे किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहिले पितरों की पूजा होती है । पितरो का हमसे सीधा सम्बन्ध है , पितृरों की आशा केवल अपने परिवार से होती है .बाकि दुनिया से नही। जिस परिवार से पितृ खुश रहते है वः सदा फुला फलता है । हमेशा उन्नति करते है । जिनके पितृ दुखी , उपेक्षित रहते है वे सदा दुखी , दरिद्री ,रोगी रहते है ।
पितृ पक्ष---- पितृ पक्ष मेंपितृ लोक के दरवाजे खुलते है और पितृ इस धरती की ओर दौड़ पड़ते है , ये मेरे बेटे , पोते , बहु ,बीबी भाई है सम्बन्धी है वः अपना हर भरा परिवार देख क्र भुत खुश होते है । (मनु स्मृति से )
इस समय पितृ पक्ष के १५ दिन तक पितृ लोक के द्वार बंद रहते है और ये प्रथ्वी पर ही भूखे प्यासे धूमते है और अपने परिवार की ओर आशा लगाये रहते है की वःहमे यद् करे हमको खाना दे ।।
करने योग्य ---- घर में बनने वाले भोजन में से पहिला भोग भगवान को लगता है , परन्तु पितृ पक्ष में पहिले ग्रास पर पितृ का अधिकार होता है अतः घर की महिला को
हाही की वह स्नान करके भोजन बनाये जो भो बनाये उसेपक जाने पर , गैस चूल्हे से निचे उतरने के पहिले एक थाली में पितरों के नाम से एक चम्मच भोजन निकल ले । इसी प्रकार जो जो बने वः सभी निकल कर घर के किसी एकांत स्थान पर rkh ले साथ में एक गिलास पानी भी ले और जो भी श्रधा हो सब एक थाली में रख ले दो अगरवत्ती जला ले ओर दक्षिण की और मुह करके अपने पितरो को भोग लगाये , बसी श्रधा से उनको याद करे। अपनी समस्या खे उनकी यद् करे। उनकी कमी को महसूस करे उन से अपने दिल की बात कहें क्योकि वः आपके अपने है । आपने उनको देखा है , उनने आपको बहुत कुछ किया है । उनको आपसे लगाव है । बच्चे भले ही अपने बुजुर्गो को भूल जाए पर वो नही भूलते । एक घंटे बाद वः सब किसी गे को खिला दे । और क्षय तिथि को या अमावश्या को बिदाई दे दे
जो परिवार पितरों को मानते है उन्हें वः आर्शीवाद देकर जाते है , जो परिवार नही मानते उनको वः श्राप दे क्र जाते है .इसे लोग जीवन भर दुखी रहते है ।
अतः हमको श्राद्ध पक्ष में पितरो की क्षय तिथि को श्राद्ध जरुर करना चाहिए । अगर क्षय तिथि मालूम न हो तो अमावश्या के दिन अपने सभी पितरो के लिए क्ष्रद करना चाहिए । आप एक ही ब्राह्मण को भोजन करा क्र श्राद्ध पूर्ण क्र सकते है याआप अपने पितरो के नम पर कच्चे अन्न का संकल्प करके दान क्र सकते है ।
देवता अग्नि के मुखसे और पितृ ब्राह्मण के मुख से हव्य ग्रहण करते है ।( पद्म पुराण )
श्राद्ध की विधि ----- क्षय तिथि को या अमावश्या को शुद्ध सात्विक भोजन बनाये ।खीर जरुर बनाये । भोजन बन जाने पर एक थाली में पञ्च पलाश के पत्ते या दोना रख ले और जो भी बना है थोड़ा थोड़ा उनमे निकल ले और दक्षिण की की और मुह करके बैठ जाए हाथ में जल लेकर मन्त्र बोले या गोभ्यो नमः बोलकर पहिले दोना में जल छोड़ दे । श्वनेभ्यो नमः से दुसरे पर नमः से काकेभ्यो नमः से तीसरे पर , देवादिभ्यो नमः से चोथे पर और पिपीलिकादिभ्योनमः ( चींटी आदि ) से पांचवे दोना पर जल छोडे । इस प्रकार ये निकलनेके बाद ब्राह्मण के लिए थाली में भोजन निकले और हाथ में तिल और जल लेकर ब्राह्मण भोजन सहित पितृ देवता तृप्तिपर्यन्तं
eसा कहकर पितृ तीर्थ से जल छोडे । उर अपने पितरो को बिदाई दे की हे पितृ आप अपने लोक में जाकर सुख से रही हम पर कृपा बनाये रखीये ।( अन्त्य कर्म प्रकाश )
इसके बाद एक या जो भी हो सके ब्राह्मण को भोजन कराए और दक्षिण दान करे । अन्न वस्त्र या जो भी हो ।
Saturday, June 13, 2009
एकादशः के कृत्य
इसम दिन निम्न कार्य करना चाहिए । ( ये सभी कार्य पंडित जी के बताए अनुसार करना चाहिए । )
१`----नारायण बली ।
२ -----मध्यम षोडशी ।
३-----आद्यश्राद
४-----प्रेत शय्या दान , विविध दान तथा उदकुम्भ दान ।
५----- वृषोत्सर्ग ।
६------संक्षिप्त वैतरणी गोदान ।
७-----उत्तम षोडशी ।
इसके बाद हर महीने म्रत्यु तिथि या क्षय तिथि पर पिंड दान करना चाहिए इसे मासिक श्राद कहते है । मासिक श्राद्ध मरने के एक साल तक ही होता है । हर माह सम्भव न हो तो एक वर्ष में श्राद्ध करना चाहिए ।
वार्षिक श्राद्ध ------vजिसे बरसी या बर्सिक श्राद्ध कहते है ।
मृतक के निमित्त श्रधा पूर्वक किए जाने वाले पिंड दान या दान धर्म को ही श्राद्ध कहते है ।
माता पिता की क्षय तिथि पर यह श्राद्ध करना चाहिय
ब्रह्म पुराण के अनुसार दोपहर १० बजकर ४८ मिनिट से लेकर १ बजकर १२ मिनिट तक करना चाहिए ।
इस क्श्रध में एक ही पिंड दान होता है । अगर ब्राह्मण नही बुलाना है तो खीर का पिंड बनाकर पितृर को अर्पण करे और ज्यादा नही तो एक ब्राह्मण को भोजन कराए यदि सौभग्य वती स्त्री का क्श्रध किया जा रहा है तो सौभाग्यवती ब्राह्मणी को भोजन करे ।
Friday, June 12, 2009
दस दिन के पिंड का विधान
पिंड दान रोज देना चाहिए सम्भव न हो तो ,तीसरे दिन तीन , पांचवें दिन दो , सातवें दिन दो , नवे दिन दो ओर दसवे दिन एक देना चाहिए ।
जो ये भी न क्र सके तो दसवे दिन दसों पिंड का दान एक साथ करे । पर करे जरुर ॥
माता पिता के अतिरिक्त किसी एनी सम्बन्धी का दस गात्र हो रहा हो और बिच में अमावश्या आ जाए तो उसी दिन द्सगात्र के दस पिंड दान क्र दे । ध्यान रहे माता पिता केलिए अमावश्या आने से कोई फर्क नही उन्हें दस दिन तक पुरे दस पिंड दान करे । ( अन्त्य कर्म दीपक से ) ।
पिंड दान सामग्री -----गंगाजल मिक्स जल, पलाश के पत्ते , दोना ,अगरबत्ती , घी की बत्ती ,गे का दूध ५० ग्राम प्रति दिन , चीनी , गे के दूध में बनी खीर या जो का आटापिंड बनाने को , कुश २५ नग , तिल २०० ग्राम , मधु ५० ग्राम , दिया जलाने को तेल तिल का , आसन , घी, सुपारी १० , पान१० , सफेद ऊर्ण सूत्र १ मीटर ,भ्रन्गराजप्रे १०० ग्राम , खस १००ग्रम , चावल १किलो , और मीठा।
प्रथम पिंड दान -----पूर्व की ओर मुख करके बैठे सामने तेल का दीपक जला ले , दो कुशों की पवित्री दाहिने हाथ की अनामिका में और तिन कुशों की बाएं हाथ की अनामिका में पहिने और केशवाय नम , नारायणआय नमः , माधवाय नमः , से आचमन करे । फ़िर अंगूठे से मुख ,नाक ,कण आँख ,ह्रदय तथा नाभि का स्पर्श करे ।
अपने उपर तथा सामग्री के उपर लज छिडके बाये हाथ में पिली सरसों लेकर दये हाथ से बंद करले भगवान का ध्यान करके चारो दिशा में डाले । ( यह सभी कार्य पंडित की देख रेख में करे ) ।
एक चोकी या वेदी बनाये फ़िर दूध घी मधु से सिक्त खीर या जो के आटा से पिंड बनाये । उसे इत्र्हुश तिल जल सहितदोना से डंक कर हाथ में लेकर प्रथम दिन के दान का स्नाक्ल्प बोले फ़िर बाएं हाथ की सहायता से दये हाथ के पितृ तीर्थ ( अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग को पितृ तीर्थ कहते है ) से वेदी के बिच कुशों पर स्थित करे ।
फ़िर पिंड का पूजन करके धुप दीप नेवेद्य आदि , तर्पण आदि जो भी पंडित जी बताये करना चाहिए ।
इसी तरह एक एक करके पुरे दस दिन तक करना चाहिए ।
कर्म की सम्पूर्णता के लिए भगवान से प्राथना करे।
पिंड प्रक्षेप -----पिंड दान के बाद दीपक बुझा दे ( बच्चों को ये कृत्य न दिखाए )पिंड तथा पूजा में उपयोग की गी साडी सामग्री ( कुश को छोड़ कर ) नदी अथवा जलाशय मेंबहा दे या गाय को खिला दे बेदी को मिटा दे ।
Thursday, June 11, 2009
मृतक के हितार्थ कृत्य
घाट पर दीप दान -------अगर सुविधा हो तो पीपल के पेड़ के पास दीप दान करना चाहिए एक घडे में दीप जला कर रखे और पेड़ से बाँध दे । दुसरे घडे में पानी भर के उसकी पेंदी में एक छिद्र बना कर उसमे एक सूत की बातीइस प्रकार डाले की पानी बूंद -बूंद टपकता रहे फ़िर ये दोनों चीजो का सकल्प पूर्व विधि से करे ।
आकाश में दूध - जल दान -------इसी समय एक मिटटी का दिया या दोना में दूध और जल लेकर पूर्व इव्धि से समर्पित करे ।
भोजन -----सूर्यास्त से पहिले ही दाहकर्ता भोजन में से गोग्रास यानि की प्रेत का हिस्सा निकल क्र घर के बहर रख दे .साथ में जल भी रखे ।
गरुड पुराण ------अपनी सुविधानुसार गरुड पुराण का श्रवण अपने कुटुंब सहित करना चाहिए .इसको सुनने से भुत पुन्य एवं ज्ञान मिलता है ।
दशाह कृत्य ------इसके बाद दाह कर्ता दस दिन तक प्रति दिन पिंड का दान करे .पुरे बिधि सहित ।
गरुड पुराण के अनुसार स्थूल शरीर नस्त हो जाने पर एक अतिवाह्क सूक्ष्म शरीर यम मार्ग की यात्रा के लिए मिलता है जिसका निर्माण दस दिन में दिए जाने वाले पिंड दान से होता है । प्रथम पिंड सेसिर दुसरे से कान , नेत्र और नासिका , तीसरे से गला कंधे , भुजा तथा वक्ष स्थल , चोथे से नाभि ,, लिंग या योनी तथा गुदा , पंचम से जणू , जंघा तथा पैर , छठा से सभी मर्म स्थान , सातवाँ से सभी नाडियाँ , आठवां से दांत लोम आदि , नवम से वीर्य या रज तथा दसवां पिंड से शरीर की पूर्णता तृप्तता तथा क्षुद्वि परयय होता है । जब तक दस गात्र के दस पिंड दान नही होते तब तक मृत प्राणी को शरीर प्राप्त नही होता और वः वायु रूप में ही सिथित हो क्र प्रेत योनी को भोगता है पितृ में वः शामिल नही हो पता है। इस लिए दस गात्र के दस पिंड दान जरुर करना चाहिए ।
अस्थि संचय निमित्त छठा पिंड दान
पिंड बनाने से जो अन्ना बचा हो उसे उसे श्मशान वासी देवो को बली प्रदान करे ।
अस्थि संचय ----गायका दूध डाल कर अस्थियों को तर कर ले , मोन हो कर पलाश की दो लकडियो से अस्थिया अलग कर ले , सबसे पहिले सर की अस्थि से शुरू करे ओर अंत में पेर की अस्थि को चुने । ये सभी अस्थि कुश के उपर एक रेशम या तुस का कपडा बिछा क्र उस पर रखे । इनको सुगन्धित जल से तर कर उनमे थोड़ा सा स्वर्ण , मधु , घी , तिल डाल दे । फ़िर कपडे में बाँध कर मिटटी के बर्तन में रखे ।
घट फोदन -----इसके बाद चिता भस्म को जल में भा दे । चिता स्थली को साफ करे ।
इसके बाद एक व्यक्ति दाहकर्ता के कंधे पर एक घडा भर क्र रखे और आगे को जाते हुए चिता स्थान पर घडा गिरा दे फ़िर मुद कर न देखे और आगे चल दे । फ़िर सभी लोग स्नान करे मोन होकर । फ़िर स्नान के बाद तिल का दान दक्षिण की और मुख करके के ।
तत्वोंपदेश ----इसके बाद सभी लोग एक जगह बैठे या रुके और बाते करे , मानव तन एक दिन नष्ट होने वाला है । यह प्रथ्वी , जल , आकाश , वायु , अग्नि के संयोग से बना है । तो एक दिन उसी पञ्च भुत में मी जाएगा । इस तन को पाने का सबसे बडा लाभ है की ये कर्म सुधार योनी है । इस से हम भगवान को प् सकते है ।
अगर आप गंगा किनारे है तो उसी दिन अस्थि विसर्जित कर दे अन्यथा घर के बहर किसी पेड़ पर अस्थि कलश लटका देना चाहिए और दस दिन के भीतर गंगा में विसर्जन करना चाहिए । दस दिन के भीतर अस्थि गंगा में विसार्जन करने पर प्राणी को गंगा घाट पर मरने का फल मिलता है ।
शमशान से लोटकर -----इसके बाद बच्चो को आगे करके सभी घर की और चले पीछे मुद कर न देखे । दरवाजे पर थोड़ा रुके फ़िर निम् की पत्ते चबाये , आचमन करे , । जल , गोबर , तेल मिर्च , पिली सरसों , और अग्नि का स्पर्श करे । फ़िर पतथर पर पैर रख कर घर में प्रवेश करे .फ़िर भगवान का चिंतन करे ।
दह कर्ता के पालनीय नियम -----१ --पहले दिन किसी निकट सम्बन्धी , ( ससुराल या ननिहाल ) से भोजन प्राप्त करके कुटुंब सहित भोजन करना चाहिए । ये सुविधा न होने पर बाजार से खरीद क्र भोजन करे ।
२-- ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
३-----भूमि शयन करे।
४ -----सूर्यास्त से पूर्व भोजन स्वय बना कर खाए या एक ही हाथ का खाए ।हो सके तो नमक रहित खाए और पत्तल में खये । किसी को न छुए । और सबसे पहिले प्रेत के निमित भोजन का ग्रास निकल क्र घर के बहर रख दे फ़िर खाए ।
५------ प्रेत के लिए पिंड दान रोज करे । इन दिनों त्याग का जीवन बिताये ।
कुटुम्बियों के लिए -----ब्रह्मचर्य का पालन करे, । २ ----- मांस अदि न खाए , , शरीर तथा कपडो में साबुन न लगाये । , तेल न लगाये । ३ ----- मन्दिर में न जाए , पूजा न करे , देव मूर्ति का स्पर्श न करे , दान न दे न लें । किसी को प्रणाम न करे न आर्शीवाद दे । घर के देवी देवता की पूजा किसी कन्या से करा ले .४------ किसी घर नखाए न खिलाए
५ ------
५ -----
Thursday, June 4, 2009
पुनः त्रिकुश जल और तिल लेकर और पिंड लेकर उन तीनो कुशो पर पिंड को रख
पंथ निमित्त्क दूसरा पिंड दान - दूसरा पिंड इसी प्रकार द्वार पर दे।
अब शव को कंधे पर उठा क्र चलते है राम का नाम लेता हुए ।
खेचर निमित्त्क तीसरा पिंड दान -- रस्ते में चोराहा आने पर शव को कंधे से उतर कर उत्तर की और सर करके रख दे .और दक्षिण की और मुंह करके तीसरा पिंड दान करे । जल छोडे विधि पुरी होने पर पिंड को उठकर अर्थी पर रख ले और भगवन का नम ले कर चल दे।
भूमि निमित्त्क चोथा पिंड दान -- शमशान के स्थ्हन पर पहुंच कर पुनः इसी रीती से पिंड दान करे ।
साधक निमित्त्क पांचवां पिंड दान --जहाँ पर चिता बनाना हो उस स्थान को गोबर मिटटी से लिप दे। भूमि से प्राथना करे । भूमि पर सभी मिल क्र चिता बनाए जो उत्तर से दक्षिण तक चार हाथ लम्बी हो चिता में तुलसी , चंदन , बेल , पीपल , आम , गुलर , बरगद शमी आदि यज्ञी लकडी जहाँ तक हो सके डाले द्विजो से चिता न बनवाये फ़िर शव को उस पर लिटा दे .सभी अंगो पर तुलसी आदि की लकडी रखे अंगो पर गी का लेप करे नेत्र , मुख आदि पर कर्पुर रखे शव को ओदायेगये चादर का कोना फाड़ कर शमशान के अधिपति को दे दे।कपड़ा सहित दह करे।
यहाँ पर पुनः बिधि सहित पिंड दान करे फ़िर भूमि से पिंड उठा कर शव के हाथ में रख दे और भगवान से प्राथना करे की प्रेत को मोक्ष प्रदान करे ।
फ़िर चिता के दाहिनी और किसी पात्र में अग्नि प्रज्ज्वलित करे और गंध , अक्षत , पुष्प आदि से अग्नि की पूजा करे । इसके बाद व्हिता पर जल , पुष्प अदि छिड़क कर मंत्रोउच्चारण सहित अग्नि को किसी सरपट आदि पर रख करदह करता चिता की तिन या एक परिक्रमा करे फ़िर सर की और से अग्नि प्रज्ज्वलित करे ।
कपाल क्रिया --शव के आधा जल जाने पर कपाल क्रिया करे बांस से शव के सर पर चोट पहुंचानी व्हाहिए औए फ़िर उस पर घी डालना चाहिए । फ़िर उच्च स्वर से रोना चाहिए । यहाँ पर आपके रोने से मृत प्राणी को असीम सुख मिलता है
एक और बैठ क्र सभी को संसार की नश्वरता का प्रति वादन करना चाहिए। ये संसार क्षण भंगुर हीहै जो आया है वः जाता है । हम सब तो भगवान की काठ पुतली है । भगवन सत्य है बाकि सब मिथ्या है । आदि वेइराग्य पूर्ण बाते करना चाहिए
चिता की सप्त समिधा --एक एक बिता की सात यज्ञी लकडियाँ लेकर दह करता एक परिक्रमा करके एक लकडी चिता में क्रव्यदया नमस्तुभ्यम कह कर डाले इस प्रकार सात परिक्रमा करे
इसके बाद कबूतर के बराबर का भाग अधजला जल में डालना चाहिए पुरा जलाना मना है
क्रमशःजय माता दी
देह त्याग के बाद के क्रत्य ॐ जे माँ म्रत्यु हो जाने पर प्राणी के कल्याण के कार्यों में लग जन चाहिए । शव ले जाने की सामग्री --१--बांसऔए बिछाने के लिए कुशासन या चटाई । २ --मॉल मल का २० मीटर सफेद कपड़ा , ( अर्थी पर बिछाने को , मीटर शव को पहिनने को , और दह करता को पहिनने को ) ३ -- सुहागिन महिला हो तो गोटा, चुनरी , सिंदूर , महावर , चूड़ी , मेहदी , हल्दी आदि । ४-- पुरूष को बंधने को सूत औए स्त्री को मौली का विधान है ये न मिलने पर मुंज की रस्सी । ५-- सजाने के लिए फुल माला । ६-- अबीर ,इतर, मिटटी की नाद छोटी सी , एक घडा ,एक थाली , लोटा , धुप , रुई , माचिस , घी , जनेऊ , नारियल , आदि ७-- शव के ऊपर डालने को मखाना बताशा , धन की लाइ ,पैसा आदि । पिंड दान के लिए ---जाऊ का आता ऐ किलो , तिल -१०० ग्राम मधु ,घी , कुश ,फुल, दोना पत्तल अदि । दह संस्कार के लिए ---देशी घी ,सामर्थ्य अनुसार ,कर्पुर , रल ,चंदन की लकड़ी , सम्र्थ्नुसार , पीपल बेल तुलसी की लकड़ी ,चिता भूमि को शुद्ध करने को दूध एक लिटर , । dahदह करता के लिए -- हाथ में जल , कुश , और तिल लेकर स्वयम के बल बनवाये फ़िर स्नान करे । शव का संस्कार --पवित्र हो कर मृत प्राणी के पासआए शव का सिरहाना उत्तर की अओर करे , स्नान के लिए नये घडे में जल भर कर गंगा जल दल क्र सभी तीर्थों का आवाहन करे , फ़िर उस जल से शव को स्नान कराए ,नये वस्र्ट से बदन पोंछ कर पुरे शरीर में गाय के घी में इतर , कर्पुर , कस्तुरी आदि सुगन्धित द्रव मिला कर लेप करे , नया वस्र्ट का कोपीन पहिना दे , जनेववाला हो तो पहिना दे , फुल , तुलसी की माला पहिना दे , माथे पर चन्दन लगा दे महिला सुहागन हो तो पुरा सिंगर करे । मुख, दोनों kaan दोनोंआँख , दोनों नाक में सोना डालें । सोना नहो तो घी की बूंद दल देन । अंगुली से लेकर सर तक शव को कपड़े सेधक् दे । तलवा खुला रखे , अर्थी पर रख कर मुज की रस्सी से बाँध दे , उपर से संभव हो तो राम नमी चादर या स्त्री हो तो चुनरी उदा दे ।ऊपर से फुल माला से सजा कर बजा बजा कर भजन कीर्तन के साथ अन्तिम यात्रा को ले जन चाहिए । ( गरुड पुराण एवं निर्णय संधू से ) रजस्वला स्त्री को शव नही छूना चाहिए ,।कबरोना चाहिए --मृत होने पर रोना नही चाहिए क्योंकि मृत प्राणी को रिने पर अपर कास्ट होता है । यह प्राणी की अन्तिम यार्ता है जिसमे वह स्वतंत्र नही होता यम् दूतों के बंधन में होता है । तो रोने वाले प्राणी के आँख नाक से जो आंसू और कफ निकलता है वह उस प्राणी कोविवश हो कर पीना पड़ता है और वह स्वर्ग से भी बंचित होता है .( याज्ञवलकय स्मृति से ) शोच मनस्तु सास्नेहां बंधवा सुह्रदसतथा । पतयन्ति गतं स्वर्गंमशरू पातेंन राघवः ।। ( बालमिकी रामायण ) ।१--जब घर से बहार शव को ले जाया जाए तो उठाते समयउच्च स्वर से रोना चाहिए । शव घर से बहर हो जाने पर बिल्कुल नही रोना चाहिए ।२--मर घट में कपल क्रिया के समय परिजनों को उच्चच स्वर से रोना चाहिए एसा करने पर मृत पानी को सुख प्राप्त होता है ।वह इन प्रेमशु कण स्वाद पाकर प्रफुल्लित हो जाता है और खुद हो कर अपनी यात्रा पर आगे बाद जाता है । (गरुड पुराण , प्रेत खंड १५ /५१ ) । देखा जाता है की लोग रो रो कर मीट पानी से पूछते है की आप मुल्हे भूल गए , किसके सहारे छोड़ गए , धोका दे गए आदि कहते है इन सब बातो से मीट पानी को अपर कास्ट की अनुभूति होती है । अथ एसा न कें । ३-- गंगा घाट पर रोने कण बिधान है । शव ले जाने के बाद भगवान के नम की चर्चा करनी चाहिए , स्मरण करना व्हाहिए । ॐज य माँ । क्रमशः ---
Wednesday, June 3, 2009
Monday, June 1, 2009
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पञ्च धेनु दान
पञ्च धेनु दान अन्तिम समय साद गति की प्राप्ति के लिए और अन्तिम यात्रा बिना कष्ट के पूर्ण होने के लिए यम के कह्तों से बचने के लिए ये सभी विधान किए जाते है । जन्म लेने के साथ ही मनुष्य योनी में जन्म लेने वाले हर प्राणी पर तिन ऋण लग जाते है। देव ऋण --२ --पित्र ऋण --३ --मनुष्य ऋण । १ --ऋण प्नोद धेनु ---उपर्युक्त तिन ऋण के अतिरिक्त मनुष्य एनी ऋण भी ले लेता है । अथ इन सभीं रीनो के पाप को नष्ट करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए ऋणप्नोद धेनु का दान किया जाता हा २ -- पापापनोद धेनु ----जीवन के ज्ञात अज्ञात पापों से छुटकारा पाने के लिए पापापनोद धेनु का दान किया जाता है ।३ -- उतक्रान्तीधेनु ----अन्तिम समय में प्राणोंत्सर्ग में bahut कष्ट की अनुब्भुती होती है , तो उस कष्ट से बचने के लिए इस धेनु का दान किया जाता है । ४--वैतरणीधेनु -- म्रत्यु के बाद जब जीवात्मा को यम मार्ग से ले जाते है तो मार्ग में सिथित घोर वैतरणी नामक नदी को पार करने के लिए इस धेनु का दान किया जाता है । ५--मोक्षधेनु -- मोक्ष पाने के लिए इस धेनु का दान दिया जाता है ।
येसभी दान चाहे दस महा दान हो या पञ्च धेनु दान
Sunday, May 31, 2009
दस महा दान क्या है ----
ये सभी दान किसी पंडित को बुला कर ही करना चाहिय मंत्रो के उच्चारण सहित ही करना चाहिए । और दान के संकल्प का जल उसीपंडित के हाथ में देना चाहिए ; तभी संकल्प पुरा होता है । कोई भी पूजा छोटी , बड़ी,और मीडियम तिन प्रकार की होती है । पूजा अपनी सरधाऔर सामर्थ्य के अनुसार की जाती है .
१ --गोऊ दान ---अगर हो सके तो एक गो का ही दान करे , अन्यथा उसके मैप दंड के अनुसार रुपया लेकर संकल्प करे गोऊ दान के साथ दूध रखने का पात्र जरुर दे ।
२--भूमि दान --जिस चीज का दान देना हो वः चीज या उसके मूल्य का द्रव्य रखकर अक्षत , पुष्प ,जल के साथ अर्पण करे ।
--३--तिल दान --काले सफ़ेद तिल का दान करे ।
४--स्वर्ण दान ---सोने का दान करे ।( एक रवा , रत्ती या अपनी सामर्थ्य अनुसार ।
५-घी दान --घी का दान करे ।
६--वस्त्र दान --वस्त्र और उप वस्त्र के रूप में दो नए वस्त्र ब्राह्मण को दान करे ।
७ -- अन्न दान --गेहूं , चावल , चना , जवा ,और मुंग सहित पञ्च अनाज का दान करे।
८--गुड दान -- गुड का दान करे।
९ -- रजत दान --- चांदी का दान करे ।
१०-- लवन दान ---नमक का दान करें ।
ये सभी चीजो का दान प्रत्यक्ष दान करे या इच्छानुसार मुद्रा दान करे ।
Friday, May 29, 2009
पंद्रहवां संस्कार --मृतक संस्कार
जब मनुष्य का अंत समय आ जाता है तभी से यह क्रम चालू हो जाता है । जो आया है सो जाएगा । जीवन की समाप्ति म्रत्यु से होती है । जब हम कहीं भीयात्रा पर जाते है तो हमारे रस्ते का खाना, पीना, सोना, आराम का पुरा ख्याल करके व् व्यवस्था करके भेजा जाता है और खुशी - खुशी बिदा किया जाता है ।
इस प्रकार म्रत्यु तो हमारी महा यात्रा है उसका स्वागत हमको खुश हो क्र करना चाहिए ।
किसी ने कहा है -- जिन्दगी तो वेवफा है एक दिन ठुकराएगी , मौत महबूबा है अपने साथ ले कर जायेगी।
जाने वाले को हमें खुश हो क्र महा यात्रा पर भेजना चाहिए ।
स्कन्द पुराण में कहा गया है की ये जीवात्मा इतना सूक्ष्म होता है की जब वह शरीर से निकलता है tab उसे in इन चर्म चक्षु से नहीं देखा जा सकता है । यह जीवात्मा अपने कर्म फल के भोग भोगने के लिए एक अंगुष्ठ का अपरिमित सूक्ष्म ( अति इन्द्रिय शरीर धारण करता है ।
ब्रह्म पुराण में कहा गया है की --इसी सूक्ष्म शरीर से जीवात्मा अपने द्वारा किए गए अच्छे और बुरे करम भोगता हुआ यम मार्ग से यमराज के पास जाता है । यहाँ पर एक बात ध्यान विशेष ध्यान देने योग्य है की प्रथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो म्रत्यु के बाद अतिवाहक सूक्ष्म शरीर धारण करता है और उसी शरीर को यमके दूतों के द्वारा यम मार्ग से यमराज के पास ले जाया जाता है । एनी प्राणियों को सूक्ष्म शरीर नही प्राप्त हो ता , वह तो म्रत्यु के बाद नानातिर्यक योनियों के प्राणी वायु रूप में विचरण करते हुए पुनः किसी योनी विशेष में जन्म हेतु उस योनी के गर्भ में आ जाते है । और फ़िर व्ही भोग्मन शुरू हो जाता है । केवल मनुष्य अपने शुभ अशुभ कर्मों का निर्माण कर सकता है और उनका अच्छा बुरा फल इस लोक और परलोक में भोगता है ।
ॐ जाय माता दी ----आगे-
प्राणोत्सर्ग के समय क्या करें ------
जब मरनासन्न व्यक्ति हो तो उसे बार बार भगवान के नाम का उच्चारण करना चाहियऐ अगर आपने एक बार भी राम, कृष्ण , शिव , दुर्गा काली का नाम उससे उच्चारण कव दिया तो समझो आपने उसकी यात्रा को सफल बना दिया । इस लिए हमको हमेशा ही भगवन नाम के उच्चअरण को आदत डालना व्हाहिये ताकि अंत समय भी हम उनका स्मरण करते रहें ।
तुलसीदास जी ने लिखा है की --कोटि कोटि मुनि जतन करहिं , अंत राम कही आवत नाहीं ।
यह वह समय है जब आपके प्रयास से उसकी महायात्रा सफल होती है हो सकता है उसका कर्म बंधन से छुटकारा हो जाए । इसलिया परिजन आस पास का माहौल इश्वर माय बना देन .और उससे बार बार नम का उच्चारण कराएँ । मरणासन्न व्यक्ति को कुश बिछा कर निचे जमीं पर लिटा देन ।
। जमीं को गोबर गंगाजल से पवित्र करके उस स्थान पर तिल बिखेरde
। ।सम्भव हो तो नई या साफ़ धोई हुई सफ़ेद चादर बिछा दे . । उस पर की भी रंग का निशान न हो ।
यथा संभव गंगा जल , तुलसी का जल , तीर्थ का जल , गोमूत्र , गे का गोबर , कुश का जल सभी को जल में मिला कर या जो भी हो उसे मिलाकर उसे स्नान करा दे या गिले कपड़े से बदन पोंछ दे ।
- जनेऊ धारण करा दे
- तुलसी की जड़ की मिटटी लेकर उसके माथे पर या सम्पुरण शरीर में लगा दे । इससे सरे पाप नष्ट हो कर विष्णु लोक की प्राप्ति होती है ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है ।
- किसी भी तीर्थ की भस्म या मिटटी , गोपी चंदन लगा दे ।
- सर पर , मुंह में, हाथ में तुलसी दल रख दे । आस पास गमले सजा दे तुलसी के ।
- घी का दीपक जला दे
- गीता का या किसी भी ग्रन्थ का पाठ करें ।
- में बार बार गंगा जल या तुलसी जल डालते रहें।
- अगर किसी व्रत का उददापन रह गया हो तो पंडित को बुलाकर संक्षिप्त में मानसिक उददापन करा दे।
- पंडित से अपनी शक्ति के अनुसार दस महादान , या अष्ट महादान या गोऊ दान अवश्य करना चाहिए ।
- जमीं पर लिटाते समय उसका सर पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए ।
- ॐ जय माता दी ....अभी आगे है ----
- kisi bhi tirth
Thursday, May 21, 2009
हमारे संस्कार बारहवां से ----
बारहवां संस्कार --- गौरी गणेश पूजा , धानदरेती ,खलमाटी, देवपितर पूजा ---- ये कार्य क्रम शादी के पांचवें या तीसरे दिन से शुरू किए जाते है
गौरी गणेश पूजा --- इस दिन शुभ मुहूर्त में क्स्ल्श स्थापित करके विघ्न हरता गणेश जी की पूजा की जाती है । धुप दीप फूल फल मीठा नारियल सब कुछ चडाया जाता है। सभी कार्य निर्विघ्न होने की प्रथना की जाती है । माता गौरी की पूजा सोडश मातृका सहित की जाती है ।
धान दरेती ---घर के आँगन में सभी महिलाएं इक्कठी हो कर यह कार्य क्रम करती है । एक कुदाली ,एक चक्की, दो सूप, सिल बट्टा , चने की दाल, चावल, उड़द की दाल फूली हुई और पूजा की थाली । महिलाएं तैयार हो कर बैठ जाती है एक दुसरे को टिका लगाती है गोद में चावल बताशा ,व रुपया डालती है । दो महिलाएं आमने सामने बैठ कर सात बार चक्की चलती हैं औरउड़द की दाल पिसती है फ़िर दोनों दो सूप में से चने की दाल एक दुसरे को देते हुए पछोद्ती हैं। मगल गीत गाती है।
खल माँटी --- उसी समय सात बांस की टोकरी रखी जाती हैं और उनका टिका पूजन होता है फ़िर सभी पास की किसी खदान या बगीचे के कोने में जाकरघर की बडी महिला खदान व् कुदाल का पूजन करती है । अपने सरे पितरों , पूर्वजों को याद करके व् नाम लेकर उनको निमंत्रण दिया जाता है की आज आपके पोते पोती की शादी है आप आइये । फ़िर घर की लड़की या दामाद कुदाल से मिटटी खोदता है और पञ्च पञ्च देलाटोकरी में रख कर लाते हैं । घर आकर जहाँ चक्की रखी है वहीं रख देते है सभी को बताशे बांटते हैं । terhvan
तेरहवां खम्ब रोपण संस्कार ---दुसरे दिन मंडप का कार्य क्रम होता है । पूजा की थाली वाही होती है जो रोज ही कम आती है चारों कोने में गड़ने के लिए चार बड़ी लकड़ी लाते हैं और एक कपड़े में एक सुपाड़ी , हल्दी , कोयला , पैसा , चावल रख कर चार पोटली बनाते है फ़िर चारों खम्बोमें बंधते हैं और हल्दी से बिच में रंगते है । घर के दामाद या भांजे से बीच में बना हुआ खम्ब आता है उसे गदावाते हैं और नेग में रुपया देते है इसके बाद पुरा मंडप बना करउस पर जामुन व् आम के पत्ते से डंक देते है । फ़िर सात घडे में पूजा का पानी भर कर लाते है । फ़िर जिसकी शादी हो रही है उसे घर के अन्दर से हाथ में सात पुआ रख कर बुआ या दीदी लती है मंडप में पता पर बिठा कर तिन बार तेल चदते है और दो बार हल्दी लगते हैं। एक थाली में हल्दी घोल ली जाती है फ़िर पुरे शरीर में पञ्च महिलाएं लगाती है । उसके बाद सभी लोग एक दुसरे को हल्दी के हाथ पीठ पर लगते हैं । और एक दुसरे को हल्दी से रंग ते हैं । आज से जिसकी शादी हो रही है उसका एक सह बाला ( साथी ) हमेशा साथ होता है ।
इसके बाद कुल देवता की पूजा होती है जिसमे एक ही कुल के लोग शामिल होते है। जिसे मैहर पूजा कहते है ।
इसके बाद तीसरे दिन agr लड़की की शादी है to बारात के आने की तयारी करते हैं अगर लड़का की शादी होती है तो बारात ले कर जाने की तयारी करते हैं ।
चौदहवां संस्कार पाणिग्रहण संस्कार --- यह अति महत्व पूर्ण होता है जब जिस समय का मुहूर्त होता है उसी प्रकार से इसे करते हैं । बारात आती है । द्वार चार होता है मंडप के निचे वर वधु अपने - अपने माता पिता और परिवार वालों के सामने , समस्त नक्षत्र तारा गणों , सभी देवताओं तथा अग्नि देवता को साक्षी मान कर वेड मंत्रों के उच्चारण के साथ एक दुसरे को पति - पत्नी स्वीकार करते हैं जिसे पाणिग्रहण कहते है लड़की के माता पिता कन्या के हाथ पीले करके वर को कन्या का दान करते हैंजिसे कन्या दान कहते है ।इसके बाद बहु तथा बारात की बिदाई होती है।
पन्द्रहवां संस्कार कंकन छोड़ना --जब बहु दरवाजे पर आती है तो बजे गाजे से उसका स्वागत होता है वर वधु को पास पास खड़ा करके दोनों का निहारन या मुह देखा जाता है यह कम सास करती है बाद में सब देखते है aur नगर के देवी देवता के मन्दिर जाकर बहु का हल्दी का हाथ लगवाते है फ़िर घर के दरवाजे पर भी हरः लगाते है । फ़िर बहु देहरी पर रखे चावल के कलश को पैर से अंदर की ओर गिरा करpaani me ghuli hui हल्दी या कूम कूम की थाली में पैर रख कर अंदर प्रवेश करती है । फ़िर मंडप के निचे वर बधू दोनों बैठते है एक बड़ी परत में हल्दी घोल कर बहुत सा पानी भर दिया जाता है फ़िर सबसे पहिले वर बधू के हाथ में बंधा धागा ( कंकन ) एक हाथ से खोलता है फ़िर बधू दोनों हाथ से वर का कनकं खोलती है फ़िर वः दोनों धागा एक अंगूठी में बाँध कर उस परत में हल्दी के पानी में डूबा देते है और दोनों में जो पहिले प् लेता है उसे विजयी मानते है । इस प्रकार हमारे सभी संस्कार होते है और दोनों का नया जीवन शुरू होता है
Wednesday, May 13, 2009
हमारे संस्कार ---- आठवां से -----
नौवाँ विद्या आरम्भ संस्कार ----यह भी तीसरे या पांचवे साल में किया जाता है गुरु पूर्णिमा , बसंती पंचमी , अक्षय तृतीया या गंगा दशहरा को बच्चे को नए वस्त्र पहिना क़रपिता या दादा गोद में लेकर बैठते है चोक बना कर चौकी पर माँ सरस्वती की फोटो रखकर कलश स्थापित करके पंडित जी से पूजन, हवन करावे । स्लेट , पेन्सिल कापी भी रखे स्लेट पर स्वस्तिक बना कर पंडित से पूजन करावे । फ़िर बच्चे का हाथ पकड़ कर स्लेट पर ग गणेश का लिखावे । बच्चे को गुरु की आज्ञा माननेकी बात बतावे विद्या का महत्व बतावे । रोज स्कुल की बाते करके उसे स्कुल जाने को तैयार करे । एक या पॉँचब्रह्मण को भोजन करा कर दान देवे ।
दसवां उपनयन संस्कार या जनेऊ ----यह संस्कार ७,९,१३ ,या १५ साल मेहोता है इस में सब कुछ शादी जैसा होता है जैसे मंडप, मैहर, पिटर पूजन कुल देवता पूजन , अदि ये पंडित के द्वारा ही कराया जाता है । बहुत लोगों में यह संस्कार शादी के समय ही होता है जहाँ लड़के को ससुराल में जनेऊ का जोड़ा पहिना देता है और गायत्री मन्त्र भी सुना देता है इसे दुर्गा जनेऊ कहते है । हिंदू में यह संस्कार जरुरी है । अब बालक किशोर अवस्था में प्रवेश करता है ।
ग्यारहवां लागुन या फलदान ----- यह शादी की सबसे पहिली रस्म है। जिसे आजकल रिंग सेरेमनी कहा जाता है लड़की वाले अपनी सामर्थ्य अनुसार लड़के को कपड़ा फल मिठाई , अंगूठी चांदी का नारियल ,चांदी की थाली , घड़ी और रुपया भी कैश रखते है । सभी रिस्त्रदार आते हैं । वर को नए कपड़े पहिना कर चोकी पर बिठाते है बहिन या बुआ वर के पीछे रहती है । पंडित जी वर से कलश , गौरी गणेश का पूजन करते है फ़िर लड़की का भाई सामने बैठ कर वर का टिका करता है, माला फिनाता है वर को एक बड़ी थाली में रख कर रुपया , मीठा फल नारियल कपड़ा आदि देता है , थाली में लग्न पत्रिकाभी रखता है जिसमे शादी का कार्य क्रम लिखा होता है , फ़िर वर को पान खिलाता है दोनों गले मिलते है , नाच गाना बाजा फोटो खाना पीना आदि खूब धूम होतीहै ।
यहाँ एक बात ध्यान देने की है की लड़की वाले बांस की टोकरी जरुर लाते है कुछ भी भर कर , और लड़के वाले भी एक बांस की टोकरी में नीचे एक रुपया रख कर उसमे मीठा पुडी , लड्डू आदि भर कर लड़की वालों को देते है इस प्रथा को वंश बहोरा कहते है ।
गोद भराई ---- दूसरी और लड़के वाले भी लड़की को कपड़े ,एक दो ज्वेलरी ,फल मीठाmeva अदि लेकर लड़की के घर जाते है जहाँ कन्या को चोकी पर बिठाया जाता है । कलश रखा जाता है फ़िर सास जिठानी नन्द आदि उसकी गोद में सब कुछ रखते है । रुपया भी डालते है । लड़की वाले सभी को बिदाई में कपड़े आदि देते है ।
Tuesday, May 12, 2009
चोथा संस्कार से -----
माँ बच्चे को ले कर बाहरआँगन में आती है सूर्य को जल चडायाजाता है फुल अक्षत आदि से पूजन करके प्रणाम किया जाता है फ़िर बच्चे को सूर्य के दर्शन कराये जाते हैं, फ़िर पृथ्वीपर लिटाते हैं इस प्रकार बच्चे को दोनों की उर्जा मिल जाती है । मायके वाले कपड़े , मिठाई , मेवा फल आदि की भेंट लाते है । बच्चे को हाय , चन्द्रमा , चेन , कड़े ,पायल आदि लाते है । झुला भी लेट है जिसकी पूजा के बाद झूले का नेग करके बच्चे को
झूले में लिटाया जाता है ।
पांचवां संस्कार -- जलवा -या जल पूजा --- यह पूजा चालीस दिन में होती हे अब जच्चा की सूतक खत्म होतीहै इस दिन जच्चा तैयार हो कर कुँआ पर जाती है मंगल गन करती हुई महिलाये जाती है कुआँ का पूजन होता है । नन्द या नंदोई पानी का घड़ा भर कर जच्चा केसर पर रखते है। फ़िर घर के दरवाजे पर आकर देवर उस घडे को उतरता है और नेग भी लेता है ।
chhata अन्नप्रासन संस्कार ----हमारे यहाँ इस संस्कार का बडा महत्व है । इसके पहिले बच्चे को अन्न नही खिलते है ये सभी संस्कार पंडित से मुहूर्त पूछ कर ही करते है । यह तीन माह से लेकर छः माह के बीच होता है । इसे बुआ या मामा जी के द्वारा कराया जाता है जो बच्चे को कपड़ा , चांदी की कटोरी , चम्मच गिलास लती है कलश , गौरी गणेश पूजन होता है फ़िर दादा दादी बच्चे को गोद में लेकर चोकी पर बैठते है और मामा या बुआ चांदी की कटोरी से चम्मच में खीर लेकर बच्चे को सात बार चटाते है । गाना नाचना होता है । मीठी बनती जाती है । satvansa
satvan मुंडन संस्कार --- जन्म के एक साल या तीसरे साल के अंदर मुंडन होता है । मुंडन अपने अपने रिवाज के मुताबिक कुल देवी देवता के स्थान पर होते है । या किसी मन्दिर में होते है । चोक दल कर कलश रखे दीपक जलवें । नाइ की कतिरी में साफ़ पानी लेवे उसमे तांबे का सिक्का डाले दादी या माँ बच्चे को गोद में लेकर बैठ जावे बुआ अपने हाथ में आता की कच्ची रोटी ले क्रर बैठती है उसमे एक रुपया रखा जाता है और उसमे सरे बाल इकट्ठे किए जाते है फ़िर उसे गोल गोल करके सारे बाल अन्दर किए जाते है और फ़िर इस बाल वाले गोले को किसी भी नदी में दाल दिया जाता है मुंडन खत्म होने पर सर में हल्दी और घी लगते है ताकि इन्फेक्शन न हो । बच्चे का teeka करते है मिठाई खिलते है
Monday, May 11, 2009
दूसरा संस्कार --- जातकर्म संस्कार
बच्चा के जन्म लेते ही सबसे पहिले घड़ी देखते है फ़िर घर के बुजुर्ग व्यक्ति से एक गुड का गोला बना कर घी लगाकर पिंड दान के नाम पर गेहूं के पास रख देते हैं एसा करने से हमारी तीन पीडी के पितरतृप्त हो कर स्वर्ग चले जाते है और उसके बाद बच्चे का नाल काटते है।
इसके बाद जो घर में सबसे ज्यादा होनहार होशियार महिला या पुरूष होता है वह सोने की सलाई पर थोड़ा सा शहद दे कर बच्चे को चटाते हैकहा जाता है की एसा करने से उस व्यक्ति के गुन बच्चे में आते हैं ।
इसके बाद सूतक मन जाता है जो पाँच दिन का होता है ।
तीसरा छठी संस्कार ----लड़की की छठी पञ्च दिन में और लड़का की छठी छः दिन में करते है । इस दिन जच्चा बच्चा को स्नान करावे फ़िर गरम गरम हरिरा या दूध पिलावे दोनों की सिकाई करेजच्चा के यूज किए हुआसारे गंदे कपड़े गरम पानी औरदितल में दल कर साफ करें । बच्चे के कपड़ा हमेशा साफ रखें इस दी सफाई के बाद सूतक समाप्त हो जाती है । इसके बाद शामको जहाँ तेल का हाथ लगाया था वहां पर आते का चौक बना कर गेहूं के ऊपर तेल का दीपक जलावें और बच्चे को गोद में लेकर चौकी पर जच्चा बैठ जावे घर के बुजुर्ग महिला अपने कुल देवता की पूजा करें सास दीवाल में गी के छः हाथ लगावे और एक सिक्का भी चिप्कावे बिच में बच्चे की बुआ नये कपड़े पहिनती है काजल लगाती है महिलाएं मंगल गीत गाती हैं । कुल देवता की पूजा की जाती है छठी माता की पूजा होती है बच्चे को दीपक का उजला नही दिखाते हैं फ़िर मुंग की दल , ६ रोटी ,६ बड़ा , ६ पुडी ६ पकौडी (ये सभी भुत छोटे बनते है ) कड़ी चावल खीर पुआ एक थाली में रख कर कुला देवता को भोग लगते है और नन्द भाभी एक ही थाली में खाते है । बुआ को भतीजा होने ki खुशी में नेग मिलता है । दरवाजे पर बाजा बजते है नाच गाना होता है इस प्रकार आने वाले बच्चे का स्वागत होता है ओउर जन्म से ही उसमे संस्कार आने शुरू हो जाता है ।
शेष अगली बार -----
ओम जय माँ --
Thursday, May 7, 2009
हमारे सोलह संस्कार
वेसे हमारे वेदों में लिखा है की जन्मोत्सव , शादी व्याह आदि में कुछ संस्कार के छुट जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता है , परन्तु मृतक कर्म तो पिरन विधि से होना चाहिए । अन्यथा जिव आत्मा को मुक्ति नही मिलती है और वह kafi समय तक प्रेत योनी में भटकतारहता है । ये संस्कार सब से अंत में आता है । जिसकी जानकारी अंत में देगे .......
pahala sanskaइस प्रकार है
१- सतमासा संस्कार --( पुंसवन संस्कार ) यह सर्व प्रथम सक्स्कर है । जब मनुष्य माँ के गर्भ में होता है तब सातवें माह में यह मनाया जाता है । यह ससुराल में मनाया जाता है ।मायके से परिवार के लोग आते हैं जो गोद भरने के लिए फल , मीठा , नारियल कपड़े आदि लाते हैं शुभ मुहूर्त में होने वाली माँ को एक पटऐ पर बिठाया जाता है गौरी गणेश का पूजन होता है कलश जलाया जाता है । फ़िर मायके के लोग माँ भाभी बारी बारी से होने वाली माँ की गोद में मीठा , फल कपड़े आदि डालते है और होने वाले बच्चे को अपना रिश्ता होने वाली माँ केkaan में धीरे से बोल कर सुनते हैं । जैसे -कि मैं आपकी नानी बोल रही हूँ सदा खुश रहना ।
फ़िर सभी लोग मंगल गीत , सोहर गाते है दोलबजाते है सभी को खाना खिलते हैं मिठाई बांटते हैं ।
कहा जाता है कि इस समय बच्चा काफी परेशानी में रहता है उसे अपने पिछले जन्म का बार बार ख्याल आता है इस समय बच्चा कि स्थिति भी बदलती है तो उसकी परेशानी को दूर करने के लिए और उसका आगमन बिना किसी परेशानी के होने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं .वह गर्भ में रह कर भी सब कुछ अनुभव करता है ।
ॐ जय माँ शेष आगे -----
Tuesday, April 28, 2009
अठारह पुराण
इस प्रकार हमारी सांस्क्रतिक धरोहर के प्रतीक चार वेद , छ शास्त्र, और अठारह पुराण है । जिसमें ज्ञान विज्ञानं , योग , अध्यात्म , अणुपरमाणु , काया कल्प व् अन्य चिकित्सा पद्यति तथा राजनीती , अर्थ व्यवस्था पद्यति , धर्म , अर्थ काम मोक्ष सभी कुछ है । आज यह सारा विश्वसमुदाय उसी सब की खोज अपने अपने तरीके से करके संसार के सामने ला रहा है । आज के वैज्ञानिक जो भी खोज कर प्रस्तुत कर रहे हैं , वह ज्ञान हमारे पूर्वजों ने काफी पहिले अर्जित कर लिया था ।
Sunday, April 26, 2009
भारतीय ग्रन्थ
वेदों की भाषा कठिन होने के कारन हमारे मनीषियों ने उसे सरल भाषा में अनुवादित किया है । जो पुराणोंके रूप में हैं । पुराणअठारह हैं ।
Friday, April 24, 2009
वाणी का धर्म क्या है ?
वाणी का अपना कुछ नही है जो भी बाकि सभी कर्मेंद्रीयां प्रस्तुत करना चाहती हैं वह वाणी प्रस्तुत कर देती है। ऐसी स्थिति में वाणी का धर्म बहुत महत्वपूर्ण है।
मेरा प्रश्न यह है कि वाणी को येसी स्थिति में क्या करना चाहिए ?
धन्यवाद्,
!! ॐ जय माँ !!
Thursday, April 23, 2009
श्री शिव सहश्त्रनाम (११ - २०)
ॐ श्री सर्व विख्याताय नमः !
ॐ सर्वश्मे नमः !
ॐ सर्वकराय नमः !
ॐ स्थाणवे नमः ! १५ !
ॐ भवाय नमः !
ॐ जटिने नमः !
ॐ चर्मिने नमः !
ॐ शिखन्दिने नमः !
ॐ सर्वभावनाय नमः ! ! २० !!
श्री शिव सहस्त्रनाम ( १- १०)
ॐ श्री गणपतये नमः !
ॐ शिवाय नमः !
ॐ स्थिराय नमः !
ॐ स्थाणवे नमः ! ५ !
ॐ प्रभवे नमः !
ॐ भीमाय नमः !
ॐ प्रवराय नमः !
ॐ वरदाय नमः !
ॐ वराय नमः ! ! १० !!
Wednesday, April 22, 2009
महाभारत : जनमानस का ग्रन्थ
भगवान श्री कृष्ण भी महाभारत काल के एक पात्र है और एक ऐसे पात्र जिसने जीवन की परिभाषा ही बदल दी। भगवान श्री कृष्ण के लिए जितना भी लिखो कम है क्यों की वह एक ऐसे चरित्र हैं जिसे शब्दों में परिभाषित करना बहुत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
भागवान श्री कृष्ण का जीवन एक सम्पूर्ण उद्देश्य है जो अपने आप में संपूर्ण है।
!! जय माता दी !!
Tuesday, April 21, 2009
रामायण के पात्र : हनुमान
हनुमान के जीवन का सार ही उनकी भगवान राम के प्रति भक्ति है और सही मायने में यही उनकी असीम शक्ति है।
!! जय श्री राम !!
Sunday, April 19, 2009
शुरुवात
धन्यवाद् !!