देह त्याग के बाद के क्रत्य
देह त्याग के बाद के क्रत्य ॐ जे माँ म्रत्यु हो जाने पर प्राणी के कल्याण के कार्यों में लग जन चाहिए । शव ले जाने की सामग्री --१--बांसऔए बिछाने के लिए कुशासन या चटाई । २ --मॉल मल का २० मीटर सफेद कपड़ा , ( अर्थी पर बिछाने को , मीटर शव को पहिनने को , और दह करता को पहिनने को ) ३ -- सुहागिन महिला हो तो गोटा, चुनरी , सिंदूर , महावर , चूड़ी , मेहदी , हल्दी आदि । ४-- पुरूष को बंधने को सूत औए स्त्री को मौली का विधान है ये न मिलने पर मुंज की रस्सी । ५-- सजाने के लिए फुल माला । ६-- अबीर ,इतर, मिटटी की नाद छोटी सी , एक घडा ,एक थाली , लोटा , धुप , रुई , माचिस , घी , जनेऊ , नारियल , आदि ७-- शव के ऊपर डालने को मखाना बताशा , धन की लाइ ,पैसा आदि । पिंड दान के लिए ---जाऊ का आता ऐ किलो , तिल -१०० ग्राम मधु ,घी , कुश ,फुल, दोना पत्तल अदि । दह संस्कार के लिए ---देशी घी ,सामर्थ्य अनुसार ,कर्पुर , रल ,चंदन की लकड़ी , सम्र्थ्नुसार , पीपल बेल तुलसी की लकड़ी ,चिता भूमि को शुद्ध करने को दूध एक लिटर , । dahदह करता के लिए -- हाथ में जल , कुश , और तिल लेकर स्वयम के बल बनवाये फ़िर स्नान करे । शव का संस्कार --पवित्र हो कर मृत प्राणी के पासआए शव का सिरहाना उत्तर की अओर करे , स्नान के लिए नये घडे में जल भर कर गंगा जल दल क्र सभी तीर्थों का आवाहन करे , फ़िर उस जल से शव को स्नान कराए ,नये वस्र्ट से बदन पोंछ कर पुरे शरीर में गाय के घी में इतर , कर्पुर , कस्तुरी आदि सुगन्धित द्रव मिला कर लेप करे , नया वस्र्ट का कोपीन पहिना दे , जनेववाला हो तो पहिना दे , फुल , तुलसी की माला पहिना दे , माथे पर चन्दन लगा दे महिला सुहागन हो तो पुरा सिंगर करे । मुख, दोनों kaan दोनोंआँख , दोनों नाक में सोना डालें । सोना नहो तो घी की बूंद दल देन । अंगुली से लेकर सर तक शव को कपड़े सेधक् दे । तलवा खुला रखे , अर्थी पर रख कर मुज की रस्सी से बाँध दे , उपर से संभव हो तो राम नमी चादर या स्त्री हो तो चुनरी उदा दे ।ऊपर से फुल माला से सजा कर बजा बजा कर भजन कीर्तन के साथ अन्तिम यात्रा को ले जन चाहिए । ( गरुड पुराण एवं निर्णय संधू से ) रजस्वला स्त्री को शव नही छूना चाहिए ,।कबरोना चाहिए --मृत होने पर रोना नही चाहिए क्योंकि मृत प्राणी को रिने पर अपर कास्ट होता है । यह प्राणी की अन्तिम यार्ता है जिसमे वह स्वतंत्र नही होता यम् दूतों के बंधन में होता है । तो रोने वाले प्राणी के आँख नाक से जो आंसू और कफ निकलता है वह उस प्राणी कोविवश हो कर पीना पड़ता है और वह स्वर्ग से भी बंचित होता है .( याज्ञवलकय स्मृति से ) शोच मनस्तु सास्नेहां बंधवा सुह्रदसतथा । पतयन्ति गतं स्वर्गंमशरू पातेंन राघवः ।। ( बालमिकी रामायण ) ।१--जब घर से बहार शव को ले जाया जाए तो उठाते समयउच्च स्वर से रोना चाहिए । शव घर से बहर हो जाने पर बिल्कुल नही रोना चाहिए ।२--मर घट में कपल क्रिया के समय परिजनों को उच्चच स्वर से रोना चाहिए एसा करने पर मृत पानी को सुख प्राप्त होता है ।वह इन प्रेमशु कण स्वाद पाकर प्रफुल्लित हो जाता है और खुद हो कर अपनी यात्रा पर आगे बाद जाता है । (गरुड पुराण , प्रेत खंड १५ /५१ ) । देखा जाता है की लोग रो रो कर मीट पानी से पूछते है की आप मुल्हे भूल गए , किसके सहारे छोड़ गए , धोका दे गए आदि कहते है इन सब बातो से मीट पानी को अपर कास्ट की अनुभूति होती है । अथ एसा न कें । ३-- गंगा घाट पर रोने कण बिधान है । शव ले जाने के बाद भगवान के नम की चर्चा करनी चाहिए , स्मरण करना व्हाहिए । ॐज य माँ । क्रमशः ---
Thursday, June 4, 2009
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