Tuesday, June 16, 2009

हमारे द्वारा दिया गया अन्न जल पितरो को कैसे मिलता है .

मरने के बाद जिव की भिन्न भिन्न गति होरी है , कोई पितृ बनता है कोई देवता बन जाता है , कोई प्रेत , हाथी चीटी , पेड़ आदि बनते है इन तक हमारे द्वारा दिया गया पिंड दान कैसे पहुचता है ।
इन प्रश्नों के उत्तर मार्कण्डेय पुराण ,वायु पुराण , श्राद्ध कल्पलता , और मनु स्मृति में सुस्पष्ट उत्तर दिय गया है की नाम गोत्र के सहारेविशवदेवएवं अग्निश्वत आदि दिव्य पितृ , हव्य कव्य को पितरो को प्राप्त करा देते है ।
ध्यान देने योग्य बात है ---- यदि पिता या कोई पूर्वज देव योनी को प्राप्त हो गया है तो आपके द्वारा दिया गया अन्न उसे वह पर अमृत होकर प्राप्त हो जाता है । मनुष्य योनी में अन्नके रूप में, आध्यत्मिक उन्नति के रूप में ,पशु योनी में तरण के रूप में, नाग योनी में वायु रूप में , यक्ष योनी में पान के रूप में , तथा एनी योनी में भी उसका भोज्य पदार्थ बनकर उसे प्राप्त हो जाता है । नम गोत्र उचित संकल्प और श्राद्ध से दिया गयापदार्थ भक्ति पूर्वक उच्चारित मन्त्र उनको पहुंचा देता है । जिव चाहे अनेको योनियों को पारकर गया हो तो भी तृप्ति उस तक पहुंच ही जाती है ।
मनु स्मृति में लिखा है ---की पितृ अंतरिक्ष में वायवीय शरीर से रहते है परन्तु पितृ पक्ष में ये मनोजीवी हो जाते है और स्मरण मात्र से ही श्राद्ध देश में आ जाते है और ब्राह्मण के मुख से भोजन कर तृप्त हो जाते है ।अगर आप श्राद्ध करने में समर्थ नही है तो कमसे कम गे को घास ही खिला दे पितरो के नाम पर .पर करे जरुर ।
जबाली सत्कम में -- महर्षि जबाली ने लिख है की जो पितृ पक्ष में पितरो को तृप्त करते है उन्हें पुत्र , आयु, आरोग्य , अतुल एश्वर्यऔर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
तीर्थ भूमि पर श्राद्ध ---पितरो में मिलन के बाद सरे पितरो का श्राद्धपितृ पक्ष में गया जाकर विधि विधान से जरुर करनाचाहिए ।
श्री मद देवी भागवत में लिखा है की जो पुत्र अपने पितरो को गया में पिंड दान देता है , उसी का पुत्रत्व सार्थक है ।
बदरी नारायण क्षेत्र में "ब्रह्म कपाली " नामक सिहं पर भीपिंड दान का बडा महत्व है । गया में पिंड दान के बादयहाँ पिंड दान करना चाहिए । पुष्कर तीर्थ में भी पिंड दान का महत्व है ।
सभी तीर्थों में जाकर पितरो को तर्पण करना चाहिए .
श्राद्ध में चांदी का बहुत महत्व है अगर चांदी के पात्र दे केवल जल मात्र ही दिया पितरो को दिया जाए तो वो अक्षय तृप्ति करक होता है। अथ हो सके तो चांदी का पात्र उपयोग में ले ।
चांदी का उद्भव शिव जी के नेत्रों से हुआ है अथ वः पवित्र है और देवो तथा पितरो को प्रिय है । ९(मत्स्य पुराण से ) ॐ जय माँ सोलह संस्कार पुरे हुए ।
श्राद्ध में लोहे का पात्र मना है ।

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