Wednesday, May 13, 2009

हमारे संस्कार ---- आठवां से -----

aathvan karn chhedan------ यह संस्कार तीसरे या पांचवें साल में किया जाता है , अधिक तर बसंत पांचवीं या अक्षय तृतीया को कर्ण छेदन होता है या फ़िर अपनी कुल की रीती के अनुसार किया जाता है । बच्चे को स्नान करा कर नये वस्त्र पहिनते है फ़िर कलश , गौरी गणेश पूजन के बाद दादी बच्चे को गोद में लेकर बैठती है और मामा के यहाँ से सोने कीबाली आती है सुनार उसी बाली से कण छेददेता है । फ़िर बच्चे को टिका कर रुपया वस्त्र या भेंट देते है । कण छेदन से कई बीमारियाँ दूर हो जाती है । बच्चा की जिद कम हो जाती है कर्ण छेदन आवश्यक संस्कार है यह विज्ञानं से जुडाहुआ है। इससे हर्निया की बीमारी नही होती ।
नौवाँ विद्या आरम्भ संस्कार ----यह भी तीसरे या पांचवे साल में किया जाता है गुरु पूर्णिमा , बसंती पंचमी , अक्षय तृतीया या गंगा दशहरा को बच्चे को नए वस्त्र पहिना क़रपिता या दादा गोद में लेकर बैठते है चोक बना कर चौकी पर माँ सरस्वती की फोटो रखकर कलश स्थापित करके पंडित जी से पूजन, हवन करावे । स्लेट , पेन्सिल कापी भी रखे स्लेट पर स्वस्तिक बना कर पंडित से पूजन करावे । फ़िर बच्चे का हाथ पकड़ कर स्लेट पर ग गणेश का लिखावे । बच्चे को गुरु की आज्ञा माननेकी बात बतावे विद्या का महत्व बतावे । रोज स्कुल की बाते करके उसे स्कुल जाने को तैयार करे । एक या पॉँचब्रह्मण को भोजन करा कर दान देवे ।
दसवां उपनयन संस्कार या जनेऊ ----यह संस्कार ७,९,१३ ,या १५ साल मेहोता है इस में सब कुछ शादी जैसा होता है जैसे मंडप, मैहर, पिटर पूजन कुल देवता पूजन , अदि ये पंडित के द्वारा ही कराया जाता है । बहुत लोगों में यह संस्कार शादी के समय ही होता है जहाँ लड़के को ससुराल में जनेऊ का जोड़ा पहिना देता है और गायत्री मन्त्र भी सुना देता है इसे दुर्गा जनेऊ कहते है । हिंदू में यह संस्कार जरुरी है । अब बालक किशोर अवस्था में प्रवेश करता है ।
ग्यारहवां लागुन या फलदान ----- यह शादी की सबसे पहिली रस्म है। जिसे आजकल रिंग सेरेमनी कहा जाता है लड़की वाले अपनी सामर्थ्य अनुसार लड़के को कपड़ा फल मिठाई , अंगूठी चांदी का नारियल ,चांदी की थाली , घड़ी और रुपया भी कैश रखते है । सभी रिस्त्रदार आते हैं । वर को नए कपड़े पहिना कर चोकी पर बिठाते है बहिन या बुआ वर के पीछे रहती है । पंडित जी वर से कलश , गौरी गणेश का पूजन करते है फ़िर लड़की का भाई सामने बैठ कर वर का टिका करता है, माला फिनाता है वर को एक बड़ी थाली में रख कर रुपया , मीठा फल नारियल कपड़ा आदि देता है , थाली में लग्न पत्रिकाभी रखता है जिसमे शादी का कार्य क्रम लिखा होता है , फ़िर वर को पान खिलाता है दोनों गले मिलते है , नाच गाना बाजा फोटो खाना पीना आदि खूब धूम होतीहै ।
यहाँ एक बात ध्यान देने की है की लड़की वाले बांस की टोकरी जरुर लाते है कुछ भी भर कर , और लड़के वाले भी एक बांस की टोकरी में नीचे एक रुपया रख कर उसमे मीठा पुडी , लड्डू आदि भर कर लड़की वालों को देते है इस प्रथा को वंश बहोरा कहते है ।
गोद भराई ---- दूसरी और लड़के वाले भी लड़की को कपड़े ,एक दो ज्वेलरी ,फल मीठाmeva अदि लेकर लड़की के घर जाते है जहाँ कन्या को चोकी पर बिठाया जाता है । कलश रखा जाता है फ़िर सास जिठानी नन्द आदि उसकी गोद में सब कुछ रखते है । रुपया भी डालते है । लड़की वाले सभी को बिदाई में कपड़े आदि देते है ।

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