जब मनुष्य का अंत समय आ जाता है तभी से यह क्रम चालू हो जाता है । जो आया है सो जाएगा । जीवन की समाप्ति म्रत्यु से होती है । जब हम कहीं भीयात्रा पर जाते है तो हमारे रस्ते का खाना, पीना, सोना, आराम का पुरा ख्याल करके व् व्यवस्था करके भेजा जाता है और खुशी - खुशी बिदा किया जाता है ।
इस प्रकार म्रत्यु तो हमारी महा यात्रा है उसका स्वागत हमको खुश हो क्र करना चाहिए ।
किसी ने कहा है -- जिन्दगी तो वेवफा है एक दिन ठुकराएगी , मौत महबूबा है अपने साथ ले कर जायेगी।
जाने वाले को हमें खुश हो क्र महा यात्रा पर भेजना चाहिए ।
स्कन्द पुराण में कहा गया है की ये जीवात्मा इतना सूक्ष्म होता है की जब वह शरीर से निकलता है tab उसे in इन चर्म चक्षु से नहीं देखा जा सकता है । यह जीवात्मा अपने कर्म फल के भोग भोगने के लिए एक अंगुष्ठ का अपरिमित सूक्ष्म ( अति इन्द्रिय शरीर धारण करता है ।
ब्रह्म पुराण में कहा गया है की --इसी सूक्ष्म शरीर से जीवात्मा अपने द्वारा किए गए अच्छे और बुरे करम भोगता हुआ यम मार्ग से यमराज के पास जाता है । यहाँ पर एक बात ध्यान विशेष ध्यान देने योग्य है की प्रथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो म्रत्यु के बाद अतिवाहक सूक्ष्म शरीर धारण करता है और उसी शरीर को यमके दूतों के द्वारा यम मार्ग से यमराज के पास ले जाया जाता है । एनी प्राणियों को सूक्ष्म शरीर नही प्राप्त हो ता , वह तो म्रत्यु के बाद नानातिर्यक योनियों के प्राणी वायु रूप में विचरण करते हुए पुनः किसी योनी विशेष में जन्म हेतु उस योनी के गर्भ में आ जाते है । और फ़िर व्ही भोग्मन शुरू हो जाता है । केवल मनुष्य अपने शुभ अशुभ कर्मों का निर्माण कर सकता है और उनका अच्छा बुरा फल इस लोक और परलोक में भोगता है ।
ॐ जाय माता दी ----आगे-
प्राणोत्सर्ग के समय क्या करें ------
जब मरनासन्न व्यक्ति हो तो उसे बार बार भगवान के नाम का उच्चारण करना चाहियऐ अगर आपने एक बार भी राम, कृष्ण , शिव , दुर्गा काली का नाम उससे उच्चारण कव दिया तो समझो आपने उसकी यात्रा को सफल बना दिया । इस लिए हमको हमेशा ही भगवन नाम के उच्चअरण को आदत डालना व्हाहिये ताकि अंत समय भी हम उनका स्मरण करते रहें ।
तुलसीदास जी ने लिखा है की --कोटि कोटि मुनि जतन करहिं , अंत राम कही आवत नाहीं ।
यह वह समय है जब आपके प्रयास से उसकी महायात्रा सफल होती है हो सकता है उसका कर्म बंधन से छुटकारा हो जाए । इसलिया परिजन आस पास का माहौल इश्वर माय बना देन .और उससे बार बार नम का उच्चारण कराएँ । मरणासन्न व्यक्ति को कुश बिछा कर निचे जमीं पर लिटा देन ।
। जमीं को गोबर गंगाजल से पवित्र करके उस स्थान पर तिल बिखेरde
। ।सम्भव हो तो नई या साफ़ धोई हुई सफ़ेद चादर बिछा दे . । उस पर की भी रंग का निशान न हो ।
यथा संभव गंगा जल , तुलसी का जल , तीर्थ का जल , गोमूत्र , गे का गोबर , कुश का जल सभी को जल में मिला कर या जो भी हो उसे मिलाकर उसे स्नान करा दे या गिले कपड़े से बदन पोंछ दे ।
- जनेऊ धारण करा दे
- तुलसी की जड़ की मिटटी लेकर उसके माथे पर या सम्पुरण शरीर में लगा दे । इससे सरे पाप नष्ट हो कर विष्णु लोक की प्राप्ति होती है ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है ।
- किसी भी तीर्थ की भस्म या मिटटी , गोपी चंदन लगा दे ।
- सर पर , मुंह में, हाथ में तुलसी दल रख दे । आस पास गमले सजा दे तुलसी के ।
- घी का दीपक जला दे
- गीता का या किसी भी ग्रन्थ का पाठ करें ।
- में बार बार गंगा जल या तुलसी जल डालते रहें।
- अगर किसी व्रत का उददापन रह गया हो तो पंडित को बुलाकर संक्षिप्त में मानसिक उददापन करा दे।
- पंडित से अपनी शक्ति के अनुसार दस महादान , या अष्ट महादान या गोऊ दान अवश्य करना चाहिए ।
- जमीं पर लिटाते समय उसका सर पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए ।
- ॐ जय माता दी ....अभी आगे है ----
- kisi bhi tirth
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