बारहवां संस्कार --- गौरी गणेश पूजा , धानदरेती ,खलमाटी, देवपितर पूजा ---- ये कार्य क्रम शादी के पांचवें या तीसरे दिन से शुरू किए जाते है
गौरी गणेश पूजा --- इस दिन शुभ मुहूर्त में क्स्ल्श स्थापित करके विघ्न हरता गणेश जी की पूजा की जाती है । धुप दीप फूल फल मीठा नारियल सब कुछ चडाया जाता है। सभी कार्य निर्विघ्न होने की प्रथना की जाती है । माता गौरी की पूजा सोडश मातृका सहित की जाती है ।
धान दरेती ---घर के आँगन में सभी महिलाएं इक्कठी हो कर यह कार्य क्रम करती है । एक कुदाली ,एक चक्की, दो सूप, सिल बट्टा , चने की दाल, चावल, उड़द की दाल फूली हुई और पूजा की थाली । महिलाएं तैयार हो कर बैठ जाती है एक दुसरे को टिका लगाती है गोद में चावल बताशा ,व रुपया डालती है । दो महिलाएं आमने सामने बैठ कर सात बार चक्की चलती हैं औरउड़द की दाल पिसती है फ़िर दोनों दो सूप में से चने की दाल एक दुसरे को देते हुए पछोद्ती हैं। मगल गीत गाती है।
खल माँटी --- उसी समय सात बांस की टोकरी रखी जाती हैं और उनका टिका पूजन होता है फ़िर सभी पास की किसी खदान या बगीचे के कोने में जाकरघर की बडी महिला खदान व् कुदाल का पूजन करती है । अपने सरे पितरों , पूर्वजों को याद करके व् नाम लेकर उनको निमंत्रण दिया जाता है की आज आपके पोते पोती की शादी है आप आइये । फ़िर घर की लड़की या दामाद कुदाल से मिटटी खोदता है और पञ्च पञ्च देलाटोकरी में रख कर लाते हैं । घर आकर जहाँ चक्की रखी है वहीं रख देते है सभी को बताशे बांटते हैं । terhvan
तेरहवां खम्ब रोपण संस्कार ---दुसरे दिन मंडप का कार्य क्रम होता है । पूजा की थाली वाही होती है जो रोज ही कम आती है चारों कोने में गड़ने के लिए चार बड़ी लकड़ी लाते हैं और एक कपड़े में एक सुपाड़ी , हल्दी , कोयला , पैसा , चावल रख कर चार पोटली बनाते है फ़िर चारों खम्बोमें बंधते हैं और हल्दी से बिच में रंगते है । घर के दामाद या भांजे से बीच में बना हुआ खम्ब आता है उसे गदावाते हैं और नेग में रुपया देते है इसके बाद पुरा मंडप बना करउस पर जामुन व् आम के पत्ते से डंक देते है । फ़िर सात घडे में पूजा का पानी भर कर लाते है । फ़िर जिसकी शादी हो रही है उसे घर के अन्दर से हाथ में सात पुआ रख कर बुआ या दीदी लती है मंडप में पता पर बिठा कर तिन बार तेल चदते है और दो बार हल्दी लगते हैं। एक थाली में हल्दी घोल ली जाती है फ़िर पुरे शरीर में पञ्च महिलाएं लगाती है । उसके बाद सभी लोग एक दुसरे को हल्दी के हाथ पीठ पर लगते हैं । और एक दुसरे को हल्दी से रंग ते हैं । आज से जिसकी शादी हो रही है उसका एक सह बाला ( साथी ) हमेशा साथ होता है ।
इसके बाद कुल देवता की पूजा होती है जिसमे एक ही कुल के लोग शामिल होते है। जिसे मैहर पूजा कहते है ।
इसके बाद तीसरे दिन agr लड़की की शादी है to बारात के आने की तयारी करते हैं अगर लड़का की शादी होती है तो बारात ले कर जाने की तयारी करते हैं ।
चौदहवां संस्कार पाणिग्रहण संस्कार --- यह अति महत्व पूर्ण होता है जब जिस समय का मुहूर्त होता है उसी प्रकार से इसे करते हैं । बारात आती है । द्वार चार होता है मंडप के निचे वर वधु अपने - अपने माता पिता और परिवार वालों के सामने , समस्त नक्षत्र तारा गणों , सभी देवताओं तथा अग्नि देवता को साक्षी मान कर वेड मंत्रों के उच्चारण के साथ एक दुसरे को पति - पत्नी स्वीकार करते हैं जिसे पाणिग्रहण कहते है लड़की के माता पिता कन्या के हाथ पीले करके वर को कन्या का दान करते हैंजिसे कन्या दान कहते है ।इसके बाद बहु तथा बारात की बिदाई होती है।
पन्द्रहवां संस्कार कंकन छोड़ना --जब बहु दरवाजे पर आती है तो बजे गाजे से उसका स्वागत होता है वर वधु को पास पास खड़ा करके दोनों का निहारन या मुह देखा जाता है यह कम सास करती है बाद में सब देखते है aur नगर के देवी देवता के मन्दिर जाकर बहु का हल्दी का हाथ लगवाते है फ़िर घर के दरवाजे पर भी हरः लगाते है । फ़िर बहु देहरी पर रखे चावल के कलश को पैर से अंदर की ओर गिरा करpaani me ghuli hui हल्दी या कूम कूम की थाली में पैर रख कर अंदर प्रवेश करती है । फ़िर मंडप के निचे वर बधू दोनों बैठते है एक बड़ी परत में हल्दी घोल कर बहुत सा पानी भर दिया जाता है फ़िर सबसे पहिले वर बधू के हाथ में बंधा धागा ( कंकन ) एक हाथ से खोलता है फ़िर बधू दोनों हाथ से वर का कनकं खोलती है फ़िर वः दोनों धागा एक अंगूठी में बाँध कर उस परत में हल्दी के पानी में डूबा देते है और दोनों में जो पहिले प् लेता है उसे विजयी मानते है । इस प्रकार हमारे सभी संस्कार होते है और दोनों का नया जीवन शुरू होता है
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