Thursday, June 11, 2009

मृतक के हितार्थ कृत्य

जिस दिन से म्रत्यु हो उसी दिन से अखंड दीप जलाने का विधान है । दस सिन तक मृतक स्थान पर या द्वार पर दीप जलाना चाहिए । अखंड सम्भव न हो तो , शाम को दीप जलना व्हाहिए ।
घाट पर दीप दान -------अगर सुविधा हो तो पीपल के पेड़ के पास दीप दान करना चाहिए एक घडे में दीप जला कर रखे और पेड़ से बाँध दे । दुसरे घडे में पानी भर के उसकी पेंदी में एक छिद्र बना कर उसमे एक सूत की बातीइस प्रकार डाले की पानी बूंद -बूंद टपकता रहे फ़िर ये दोनों चीजो का सकल्प पूर्व विधि से करे ।
आकाश में दूध - जल दान -------इसी समय एक मिटटी का दिया या दोना में दूध और जल लेकर पूर्व इव्धि से समर्पित करे ।
भोजन -----सूर्यास्त से पहिले ही दाहकर्ता भोजन में से गोग्रास यानि की प्रेत का हिस्सा निकल क्र घर के बहर रख दे .साथ में जल भी रखे ।
गरुड पुराण ------अपनी सुविधानुसार गरुड पुराण का श्रवण अपने कुटुंब सहित करना चाहिए .इसको सुनने से भुत पुन्य एवं ज्ञान मिलता है ।
दशाह कृत्य ------इसके बाद दाह कर्ता दस दिन तक प्रति दिन पिंड का दान करे .पुरे बिधि सहित ।
गरुड पुराण के अनुसार स्थूल शरीर नस्त हो जाने पर एक अतिवाह्क सूक्ष्म शरीर यम मार्ग की यात्रा के लिए मिलता है जिसका निर्माण दस दिन में दिए जाने वाले पिंड दान से होता है । प्रथम पिंड सेसिर दुसरे से कान , नेत्र और नासिका , तीसरे से गला कंधे , भुजा तथा वक्ष स्थल , चोथे से नाभि ,, लिंग या योनी तथा गुदा , पंचम से जणू , जंघा तथा पैर , छठा से सभी मर्म स्थान , सातवाँ से सभी नाडियाँ , आठवां से दांत लोम आदि , नवम से वीर्य या रज तथा दसवां पिंड से शरीर की पूर्णता तृप्तता तथा क्षुद्वि परयय होता है । जब तक दस गात्र के दस पिंड दान नही होते तब तक मृत प्राणी को शरीर प्राप्त नही होता और वः वायु रूप में ही सिथित हो क्र प्रेत योनी को भोगता है पितृ में वः शामिल नही हो पता है। इस लिए दस गात्र के दस पिंड दान जरुर करना चाहिए

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