Thursday, June 4, 2009

शव को धर से बहार निकलने के पहिले जावा या चावल के आटेमें घी मिला कर छः पिंड यानि की गोले बना लेना चाहिए । मृतस्थाने तथा द्वारे चत्वारऐ ताक्षर्य कारणात। विश्रामऐ काष्ट चयनऐ तथा संचयने च षत ।। ( गरुड़ पुराण प्रेत खंड १५ ? ३० - ३१ )। शव को पहला पिंड दान --दह कर्ताअपने दायें हाथ में त्रिकुश , जल और तिल लेकर बैठ जाए( जहाँ पर शव रखा है या नि की जो म्रत्यु स्थान है वहां पर )और आद्य गोत्र (यानि की जो भी मृत क का गोत्र हो )वःह बोल कर )प्रेतत्वनिवृत्ति पूर्वक शास्त्रोक्त फल प्राप्त अर्थंम भूमि आदि देवता तुष्ट अर्थंम च मृतिस्थाने शव निमित्त्क्म पिंड दान करिश्येत । इस पाकर बोल कर संकल्प का जल गिरा दे । इसी प्रकार पुनः जल लेकर संकल्प करके भूमि पर अंगूठे और तर्जनी के मूल से गिरा दे वहां पर दक्षिणगर तिन कुश बिछा दे । और दये हाथ में पिंड ले क्र बाये हाथ से दये हाथ का स्पर्श करे .
पुनः त्रिकुश जल और तिल लेकर और पिंड लेकर उन तीनो कुशो पर पिंड को रख
पंथ निमित्त्क दूसरा पिंड दान - दूसरा पिंड इसी प्रकार द्वार पर दे।
अब शव को कंधे पर उठा क्र चलते है राम का नाम लेता हुए ।
खेचर निमित्त्क तीसरा पिंड दान -- रस्ते में चोराहा आने पर शव को कंधे से उतर कर उत्तर की और सर करके रख दे .और दक्षिण की और मुंह करके तीसरा पिंड दान करे । जल छोडे विधि पुरी होने पर पिंड को उठकर अर्थी पर रख ले और भगवन का नम ले कर चल दे।
भूमि निमित्त्क चोथा पिंड दान -- शमशान के स्थ्हन पर पहुंच कर पुनः इसी रीती से पिंड दान करे ।
साधक निमित्त्क पांचवां पिंड दान --जहाँ पर चिता बनाना हो उस स्थान को गोबर मिटटी से लिप दे। भूमि से प्राथना करे । भूमि पर सभी मिल क्र चिता बनाए जो उत्तर से दक्षिण तक चार हाथ लम्बी हो चिता में तुलसी , चंदन , बेल , पीपल , आम , गुलर , बरगद शमी आदि यज्ञी लकडी जहाँ तक हो सके डाले द्विजो से चिता न बनवाये फ़िर शव को उस पर लिटा दे .सभी अंगो पर तुलसी आदि की लकडी रखे अंगो पर गी का लेप करे नेत्र , मुख आदि पर कर्पुर रखे शव को ओदायेगये चादर का कोना फाड़ कर शमशान के अधिपति को दे दे।कपड़ा सहित दह करे।
यहाँ पर पुनः बिधि सहित पिंड दान करे फ़िर भूमि से पिंड उठा कर शव के हाथ में रख दे और भगवान से प्राथना करे की प्रेत को मोक्ष प्रदान करे ।
फ़िर चिता के दाहिनी और किसी पात्र में अग्नि प्रज्ज्वलित करे और गंध , अक्षत , पुष्प आदि से अग्नि की पूजा करे । इसके बाद व्हिता पर जल , पुष्प अदि छिड़क कर मंत्रोउच्चारण सहित अग्नि को किसी सरपट आदि पर रख करदह करता चिता की तिन या एक परिक्रमा करे फ़िर सर की और से अग्नि प्रज्ज्वलित करे ।
कपाल क्रिया --शव के आधा जल जाने पर कपाल क्रिया करे बांस से शव के सर पर चोट पहुंचानी व्हाहिए औए फ़िर उस पर घी डालना चाहिए । फ़िर उच्च स्वर से रोना चाहिए । यहाँ पर आपके रोने से मृत प्राणी को असीम सुख मिलता है
एक और बैठ क्र सभी को संसार की नश्वरता का प्रति वादन करना चाहिए। ये संसार क्षण भंगुर हीहै जो आया है वः जाता है । हम सब तो भगवान की काठ पुतली है । भगवन सत्य है बाकि सब मिथ्या है । आदि वेइराग्य पूर्ण बाते करना चाहिए
चिता की सप्त समिधा --एक एक बिता की सात यज्ञी लकडियाँ लेकर दह करता एक परिक्रमा करके एक लकडी चिता में क्रव्यदया नमस्तुभ्यम कह कर डाले इस प्रकार सात परिक्रमा करे
इसके बाद कबूतर के बराबर का भाग अधजला जल में डालना चाहिए पुरा जलाना मना है
क्रमशःजय माता दी

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