वाणी भगवान की एक महान उपहार है और जो इसका दुरूपयोग करता है वह भगवान के इस उपहार का अनादर करता है । वाणी सभी कर्मेंद्रियों का प्रस्तुतीकरण है। और यह भी कहा जा सकता है की वाणी सभी कर्मेद्रियों को शब्द प्रदान करती है।
वाणी का अपना कुछ नही है जो भी बाकि सभी कर्मेंद्रीयां प्रस्तुत करना चाहती हैं वह वाणी प्रस्तुत कर देती है। ऐसी स्थिति में वाणी का धर्म बहुत महत्वपूर्ण है।
मेरा प्रश्न यह है कि वाणी को येसी स्थिति में क्या करना चाहिए ?
धन्यवाद्,
!! ॐ जय माँ !!
Friday, April 24, 2009
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