हमारे हिंदू धर्ममें मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार होते है ।अब बदलते समय के साथ हम अपने संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। फ़िर भी हम मुख्य मुख्य संस्कार आज भी पुरे करते हैं ।हमारे ऋषि मुनियों ने विज्ञानं को धर्म से जोड़ रखा था । वो जानते थे की सूर्य ग्रहण , चन्द्र ग्रहण , उत्तरायण , दक्षिणायन का महत्व क्या है और उसका जीवन पर क्या प्रभाव है । मेरा उद्देश्य आप सभी को जानकारी देना है । अपने विवेकऔर जानकारी के अनुसार लिख रही हूँ । गलतियों को न देख कर मेरी बिचार धारा को सझने का प्रयास कीजिये ।
वेसे हमारे वेदों में लिखा है की जन्मोत्सव , शादी व्याह आदि में कुछ संस्कार के छुट जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता है , परन्तु मृतक कर्म तो पिरन विधि से होना चाहिए । अन्यथा जिव आत्मा को मुक्ति नही मिलती है और वह kafi समय तक प्रेत योनी में भटकतारहता है । ये संस्कार सब से अंत में आता है । जिसकी जानकारी अंत में देगे .......
pahala sanskaइस प्रकार है
१- सतमासा संस्कार --( पुंसवन संस्कार ) यह सर्व प्रथम सक्स्कर है । जब मनुष्य माँ के गर्भ में होता है तब सातवें माह में यह मनाया जाता है । यह ससुराल में मनाया जाता है ।मायके से परिवार के लोग आते हैं जो गोद भरने के लिए फल , मीठा , नारियल कपड़े आदि लाते हैं शुभ मुहूर्त में होने वाली माँ को एक पटऐ पर बिठाया जाता है गौरी गणेश का पूजन होता है कलश जलाया जाता है । फ़िर मायके के लोग माँ भाभी बारी बारी से होने वाली माँ की गोद में मीठा , फल कपड़े आदि डालते है और होने वाले बच्चे को अपना रिश्ता होने वाली माँ केkaan में धीरे से बोल कर सुनते हैं । जैसे -कि मैं आपकी नानी बोल रही हूँ सदा खुश रहना ।
फ़िर सभी लोग मंगल गीत , सोहर गाते है दोलबजाते है सभी को खाना खिलते हैं मिठाई बांटते हैं ।
कहा जाता है कि इस समय बच्चा काफी परेशानी में रहता है उसे अपने पिछले जन्म का बार बार ख्याल आता है इस समय बच्चा कि स्थिति भी बदलती है तो उसकी परेशानी को दूर करने के लिए और उसका आगमन बिना किसी परेशानी के होने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं .वह गर्भ में रह कर भी सब कुछ अनुभव करता है ।
ॐ जय माँ शेष आगे -----
Thursday, May 7, 2009
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