Tuesday, June 23, 2009

मुख्य त्यौहार

हमारे देश में अनेकों त्यौहार मनाये जाते है । पर मुख्यतया निम्न हैं
होली ----- यह रंगों का त्यौहार है जो मार्च माह में आता है । इस दिन हम आपसी बुराईको भूल कर आपस में गले मिलते है । यह आपसी भाई चारा और बुराई पर सच्चाई की जीत का त्यौहार है। यह शूद्रों का पर्व मन जाता है ।

गुडी पडवा ---यह पर्व चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की परमा यानि की प्रथम दिन मनाया जाता है ।
कहा जाता है की इस दिन ब्रह्म जी ने संसार की रचना की थी । लोग एक दुसरे को नव वर्ष की बधाई देते है ।

रक्षा बंधन ----यह पर्व अगस्त मास में श्रावण मास ki पूर्णिमा को मनाया जाता है । यह भाई बहिन का त्यौहार है इस दिन बहिन भाई की कलाई पर रखी बंधती है और भाई जीवन भर उसकी रक्षा का बचन देता है । ब्रह्मण लोग भी रक्षा सूत्र बंधते हैं । इसी लिए यह मुख्यतः ब्राह्मणों का पर्व है ।

दशहरा ---- यह सच्चाई की जीत का त्यौहार है यह मुख्यत क्षत्रियों का पर्व है । इस दिन वे अपने हथियारों का पूजन प्रदर्शन करते हैं ।

दीपावली ----इस दिन हम सभी अपने घरों की सफाई करते है और दीपमाला से घर को रोशन करते है कहा जाता है की माता लक्ष्मी जी आज के दिन घर पर आती है । इसी लिए हम गणेश , लक्ष्मी जी और माता सरस्वती जी की पूजा करते है आज ही के दिन राम जी वनवास से घर अयोध्या वापिस आए थे । वेसे यह पर्व दीवाली से दो दिन पहिले यानि की धन तेरस , नर्क चौदस , दीवाली , अन्नकूट और पांचवे दिन भाई दोजके रूप में मनाया जाता है । इस दिन अपने बही खाता का पूजन बैश्य लोग करते है । इसी लिए इसे बैश्योंका पर्व कहते है । यह नवम्बर मास में मनाया जाता है ।

हमारे त्यौहार

वैस h

Sunday, June 21, 2009

हमारे मुख्य त्यौहार

जनवरी के महीने में१४ जनवरी को महा संक्रांति का पर्व मनाया जाता है । यही एक एसा त्यौहार है जो तारीख से मनाया जाता है बाकि सब हिन्दी महीने की तिथि से मनाये जाते है। यह एसा समय होता है जब सूर्यउत्तरायण हो जाता है । इस कल में म्रत्यु पाने को भीष्म पितामह ने छ माह तक बाणोंकी शय्या पर पडे रह क्र इंतजार किया था ।दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है । पंजाब क्षेर्तमें इसे लोहडी के नाम से मनाया जाता है .

Thursday, June 18, 2009

भारत की झांकी

भारत एक विविधता का देश है जहाँ सभी धर्म और जातिके लोग निवास करते है । आपसी भाई चारे की मिसाल भारत में ही देखने को मिलती हे । यह वो देश है जहा लोग पत्थर से भगवान को प्रकट करते है .यानि की पत्थर भी पूजे जाते है । नदीयों को भी माता का दर्जा दिय जाता है यहाँ पेडोंकी भी पूजा होती है , यहाँ आकाश , वायु , जल के स्त्रोत , अग्नि , प्रथ्वी , और उस पर उगी वनस्पति यानि की प्रकृति के सभी रूपों की पूजा भिन्न भिन्न रूप में होती है । हम इन सभी में उस परम सत्ता के दर्शन करते है ।माता पिता , गुरु , या अपने से बडों में भी हम उसी को देखते है। सर्प , गाय , हाथी ,बैल , शेर , चूहा , बदक ,हंस , मोर , आदि की पूजा करते है अर्थात्र इश्वरसर्व व्यापी है , सभी रूपों में है। हम किसी भी रूप में उसे माने वह हमे स्वीकार क्र लेता है । वः मन्दिर ,मस्जिद , गुरुद्वारा , चर्च , घर आंगन , बहर भीतर, उपर निचे ,खेत बाग, अमीर गरीब, हममे तुममे सबमे है ।
जिस प्रकार वह इश्वर प्रकृति के हर रूप में है ठीक उसी प्रकार भारत देश अपने विभिन्न रूप से हर भारत वासी में है । यही हमारा भारत है, जो एक गुलदस्ता है , एक गागर में भरा हुआ सागर है ।
जिस पर हर भारत वासी को गर्व है

Tuesday, June 16, 2009

हमारे द्वारा दिया गया अन्न जल पितरो को कैसे मिलता है .

मरने के बाद जिव की भिन्न भिन्न गति होरी है , कोई पितृ बनता है कोई देवता बन जाता है , कोई प्रेत , हाथी चीटी , पेड़ आदि बनते है इन तक हमारे द्वारा दिया गया पिंड दान कैसे पहुचता है ।
इन प्रश्नों के उत्तर मार्कण्डेय पुराण ,वायु पुराण , श्राद्ध कल्पलता , और मनु स्मृति में सुस्पष्ट उत्तर दिय गया है की नाम गोत्र के सहारेविशवदेवएवं अग्निश्वत आदि दिव्य पितृ , हव्य कव्य को पितरो को प्राप्त करा देते है ।
ध्यान देने योग्य बात है ---- यदि पिता या कोई पूर्वज देव योनी को प्राप्त हो गया है तो आपके द्वारा दिया गया अन्न उसे वह पर अमृत होकर प्राप्त हो जाता है । मनुष्य योनी में अन्नके रूप में, आध्यत्मिक उन्नति के रूप में ,पशु योनी में तरण के रूप में, नाग योनी में वायु रूप में , यक्ष योनी में पान के रूप में , तथा एनी योनी में भी उसका भोज्य पदार्थ बनकर उसे प्राप्त हो जाता है । नम गोत्र उचित संकल्प और श्राद्ध से दिया गयापदार्थ भक्ति पूर्वक उच्चारित मन्त्र उनको पहुंचा देता है । जिव चाहे अनेको योनियों को पारकर गया हो तो भी तृप्ति उस तक पहुंच ही जाती है ।
मनु स्मृति में लिखा है ---की पितृ अंतरिक्ष में वायवीय शरीर से रहते है परन्तु पितृ पक्ष में ये मनोजीवी हो जाते है और स्मरण मात्र से ही श्राद्ध देश में आ जाते है और ब्राह्मण के मुख से भोजन कर तृप्त हो जाते है ।अगर आप श्राद्ध करने में समर्थ नही है तो कमसे कम गे को घास ही खिला दे पितरो के नाम पर .पर करे जरुर ।
जबाली सत्कम में -- महर्षि जबाली ने लिख है की जो पितृ पक्ष में पितरो को तृप्त करते है उन्हें पुत्र , आयु, आरोग्य , अतुल एश्वर्यऔर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
तीर्थ भूमि पर श्राद्ध ---पितरो में मिलन के बाद सरे पितरो का श्राद्धपितृ पक्ष में गया जाकर विधि विधान से जरुर करनाचाहिए ।
श्री मद देवी भागवत में लिखा है की जो पुत्र अपने पितरो को गया में पिंड दान देता है , उसी का पुत्रत्व सार्थक है ।
बदरी नारायण क्षेत्र में "ब्रह्म कपाली " नामक सिहं पर भीपिंड दान का बडा महत्व है । गया में पिंड दान के बादयहाँ पिंड दान करना चाहिए । पुष्कर तीर्थ में भी पिंड दान का महत्व है ।
सभी तीर्थों में जाकर पितरो को तर्पण करना चाहिए .
श्राद्ध में चांदी का बहुत महत्व है अगर चांदी के पात्र दे केवल जल मात्र ही दिया पितरो को दिया जाए तो वो अक्षय तृप्ति करक होता है। अथ हो सके तो चांदी का पात्र उपयोग में ले ।
चांदी का उद्भव शिव जी के नेत्रों से हुआ है अथ वः पवित्र है और देवो तथा पितरो को प्रिय है । ९(मत्स्य पुराण से ) ॐ जय माँ सोलह संस्कार पुरे हुए ।
श्राद्ध में लोहे का पात्र मना है ।

Monday, June 15, 2009

मेलन यानि की मृत प्राणी को पितरों में मिलाना

मरने के बाद प्राणी को पितरो के साथ मिला दिया जाता है यह जरूरी है । जब तक मिलन नही किया जाता तब तक मृत प्राणी अपने मृत पूर्वजों से नही मिल सकता ।( यज्ञं ० स्म्र० से )
अतः मृतक को श्राद्ध द्वारा पिता में , पितामह में , फ़िर प्रपितामह में मेलन कराया जाता है ।
अगर मृतक स्त्री है और उसका पति जीवित है , तोउसका मेलन सास , परसासऔर वृद्ध परसास में होगा ।
अगर पति जीवित नही है तो स्त्री प्रेत का मेलन पति , श्वसुर और प्रश्वसुर में होगा ।
साधारण श्राद्ध ------हर किसी को श्राद्ध करना आवश्यक है । हमारे किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहिले पितरों की पूजा होती है । पितरो का हमसे सीधा सम्बन्ध है , पितृरों की आशा केवल अपने परिवार से होती है .बाकि दुनिया से नही। जिस परिवार से पितृ खुश रहते है वः सदा फुला फलता है । हमेशा उन्नति करते है । जिनके पितृ दुखी , उपेक्षित रहते है वे सदा दुखी , दरिद्री ,रोगी रहते है ।
पितृ पक्ष---- पितृ पक्ष मेंपितृ लोक के दरवाजे खुलते है और पितृ इस धरती की ओर दौड़ पड़ते है , ये मेरे बेटे , पोते , बहु ,बीबी भाई है सम्बन्धी है वः अपना हर भरा परिवार देख क्र भुत खुश होते है । (मनु स्मृति से )
इस समय पितृ पक्ष के १५ दिन तक पितृ लोक के द्वार बंद रहते है और ये प्रथ्वी पर ही भूखे प्यासे धूमते है और अपने परिवार की ओर आशा लगाये रहते है की वःहमे यद् करे हमको खाना दे ।।
करने योग्य ---- घर में बनने वाले भोजन में से पहिला भोग भगवान को लगता है , परन्तु पितृ पक्ष में पहिले ग्रास पर पितृ का अधिकार होता है अतः घर की महिला को
हाही की वह स्नान करके भोजन बनाये जो भो बनाये उसेपक जाने पर , गैस चूल्हे से निचे उतरने के पहिले एक थाली में पितरों के नाम से एक चम्मच भोजन निकल ले । इसी प्रकार जो जो बने वः सभी निकल कर घर के किसी एकांत स्थान पर rkh ले साथ में एक गिलास पानी भी ले और जो भी श्रधा हो सब एक थाली में रख ले दो अगरवत्ती जला ले ओर दक्षिण की और मुह करके अपने पितरो को भोग लगाये , बसी श्रधा से उनको याद करे। अपनी समस्या खे उनकी यद् करे। उनकी कमी को महसूस करे उन से अपने दिल की बात कहें क्योकि वः आपके अपने है । आपने उनको देखा है , उनने आपको बहुत कुछ किया है । उनको आपसे लगाव है । बच्चे भले ही अपने बुजुर्गो को भूल जाए पर वो नही भूलते । एक घंटे बाद वः सब किसी गे को खिला दे । और क्षय तिथि को या अमावश्या को बिदाई दे दे
जो परिवार पितरों को मानते है उन्हें वः आर्शीवाद देकर जाते है , जो परिवार नही मानते उनको वः श्राप दे क्र जाते है .इसे लोग जीवन भर दुखी रहते है ।
अतः हमको श्राद्ध पक्ष में पितरो की क्षय तिथि को श्राद्ध जरुर करना चाहिए । अगर क्षय तिथि मालूम न हो तो अमावश्या के दिन अपने सभी पितरो के लिए क्ष्रद करना चाहिए । आप एक ही ब्राह्मण को भोजन करा क्र श्राद्ध पूर्ण क्र सकते है याआप अपने पितरो के नम पर कच्चे अन्न का संकल्प करके दान क्र सकते है ।
देवता अग्नि के मुखसे और पितृ ब्राह्मण के मुख से हव्य ग्रहण करते है ।( पद्म पुराण )
श्राद्ध की विधि ----- क्षय तिथि को या अमावश्या को शुद्ध सात्विक भोजन बनाये ।खीर जरुर बनाये । भोजन बन जाने पर एक थाली में पञ्च पलाश के पत्ते या दोना रख ले और जो भी बना है थोड़ा थोड़ा उनमे निकल ले और दक्षिण की की और मुह करके बैठ जाए हाथ में जल लेकर मन्त्र बोले या गोभ्यो नमः बोलकर पहिले दोना में जल छोड़ दे । श्वनेभ्यो नमः से दुसरे पर नमः से काकेभ्यो नमः से तीसरे पर , देवादिभ्यो नमः से चोथे पर और पिपीलिकादिभ्योनमः ( चींटी आदि ) से पांचवे दोना पर जल छोडे । इस प्रकार ये निकलनेके बाद ब्राह्मण के लिए थाली में भोजन निकले और हाथ में तिल और जल लेकर ब्राह्मण भोजन सहित पितृ देवता तृप्तिपर्यन्तं
eसा कहकर पितृ तीर्थ से जल छोडे । उर अपने पितरो को बिदाई दे की हे पितृ आप अपने लोक में जाकर सुख से रही हम पर कृपा बनाये रखीये ।( अन्त्य कर्म प्रकाश )
इसके बाद एक या जो भी हो सके ब्राह्मण को भोजन कराए और दक्षिण दान करे । अन्न वस्त्र या जो भी हो ।

Saturday, June 13, 2009

एकादशः के कृत्य

दस गात्र के बाद घर से छुतक समाप्त हो जाती है। इसके बाद एकदश क्रेत्यहोते है जिसे कोई द्व्द्शी या त्रयोदशी को करता है । ये अपने देश कल के रिवाज के अनुसार होता है ।ये सभी पूजन अपनी सामर्थ्य के हिसाब से करना चाहिए .
इसम दिन निम्न कार्य करना चाहिए । ( ये सभी कार्य पंडित जी के बताए अनुसार करना चाहिए । )
१`----नारायण बली ।
२ -----मध्यम षोडशी ।
३-----आद्यश्राद
४-----प्रेत शय्या दान , विविध दान तथा उदकुम्भ दान ।
५----- वृषोत्सर्ग ।
६------संक्षिप्त वैतरणी गोदान ।
७-----उत्तम षोडशी ।
इसके बाद हर महीने म्रत्यु तिथि या क्षय तिथि पर पिंड दान करना चाहिए इसे मासिक श्राद कहते है । मासिक श्राद्ध मरने के एक साल तक ही होता है । हर माह सम्भव न हो तो एक वर्ष में श्राद्ध करना चाहिए ।
वार्षिक श्राद्ध ------vजिसे बरसी या बर्सिक श्राद्ध कहते है ।
मृतक के निमित्त श्रधा पूर्वक किए जाने वाले पिंड दान या दान धर्म को ही श्राद्ध कहते है ।
माता पिता की क्षय तिथि पर यह श्राद्ध करना चाहिय
ब्रह्म पुराण के अनुसार दोपहर १० बजकर ४८ मिनिट से लेकर १ बजकर १२ मिनिट तक करना चाहिए ।
इस क्श्रध में एक ही पिंड दान होता है । अगर ब्राह्मण नही बुलाना है तो खीर का पिंड बनाकर पितृर को अर्पण करे और ज्यादा नही तो एक ब्राह्मण को भोजन कराए यदि सौभग्य वती स्त्री का क्श्रध किया जा रहा है तो सौभाग्यवती ब्राह्मणी को भोजन करे ।



Friday, June 12, 2009

दस दिन के पिंड का विधान

द्स्गात्र के पहिले दिन जिस अन्न से पिंड दान करे दस दिन तक उसी अन्न से पिंड दान देना चाहिए ।
पिंड दान रोज देना चाहिए सम्भव न हो तो ,तीसरे दिन तीन , पांचवें दिन दो , सातवें दिन दो , नवे दिन दो ओर दसवे दिन एक देना चाहिए ।
जो ये भी न क्र सके तो दसवे दिन दसों पिंड का दान एक साथ करे । पर करे जरुर ॥
माता पिता के अतिरिक्त किसी एनी सम्बन्धी का दस गात्र हो रहा हो और बिच में अमावश्या आ जाए तो उसी दिन द्सगात्र के दस पिंड दान क्र दे । ध्यान रहे माता पिता केलिए अमावश्या आने से कोई फर्क नही उन्हें दस दिन तक पुरे दस पिंड दान करे । ( अन्त्य कर्म दीपक से ) ।
पिंड दान सामग्री -----गंगाजल मिक्स जल, पलाश के पत्ते , दोना ,अगरबत्ती , घी की बत्ती ,गे का दूध ५० ग्राम प्रति दिन , चीनी , गे के दूध में बनी खीर या जो का आटापिंड बनाने को , कुश २५ नग , तिल २०० ग्राम , मधु ५० ग्राम , दिया जलाने को तेल तिल का , आसन , घी, सुपारी १० , पान१० , सफेद ऊर्ण सूत्र १ मीटर ,भ्रन्गराजप्रे १०० ग्राम , खस १००ग्रम , चावल १किलो , और मीठा।
प्रथम पिंड दान -----पूर्व की ओर मुख करके बैठे सामने तेल का दीपक जला ले , दो कुशों की पवित्री दाहिने हाथ की अनामिका में और तिन कुशों की बाएं हाथ की अनामिका में पहिने और केशवाय नम , नारायणआय नमः , माधवाय नमः , से आचमन करे । फ़िर अंगूठे से मुख ,नाक ,कण आँख ,ह्रदय तथा नाभि का स्पर्श करे ।
अपने उपर तथा सामग्री के उपर लज छिडके बाये हाथ में पिली सरसों लेकर दये हाथ से बंद करले भगवान का ध्यान करके चारो दिशा में डाले । ( यह सभी कार्य पंडित की देख रेख में करे ) ।
एक चोकी या वेदी बनाये फ़िर दूध घी मधु से सिक्त खीर या जो के आटा से पिंड बनाये । उसे इत्र्हुश तिल जल सहितदोना से डंक कर हाथ में लेकर प्रथम दिन के दान का स्नाक्ल्प बोले फ़िर बाएं हाथ की सहायता से दये हाथ के पितृ तीर्थ ( अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग को पितृ तीर्थ कहते है ) से वेदी के बिच कुशों पर स्थित करे ।
फ़िर पिंड का पूजन करके धुप दीप नेवेद्य आदि , तर्पण आदि जो भी पंडित जी बताये करना चाहिए ।
इसी तरह एक एक करके पुरे दस दिन तक करना चाहिए ।
कर्म की सम्पूर्णता के लिए भगवान से प्राथना करे।
पिंड प्रक्षेप -----पिंड दान के बाद दीपक बुझा दे ( बच्चों को ये कृत्य न दिखाए )पिंड तथा पूजा में उपयोग की गी साडी सामग्री ( कुश को छोड़ कर ) नदी अथवा जलाशय मेंबहा दे या गाय को खिला दे बेदी को मिटा दे ।

Thursday, June 11, 2009

मृतक के हितार्थ कृत्य

जिस दिन से म्रत्यु हो उसी दिन से अखंड दीप जलाने का विधान है । दस सिन तक मृतक स्थान पर या द्वार पर दीप जलाना चाहिए । अखंड सम्भव न हो तो , शाम को दीप जलना व्हाहिए ।
घाट पर दीप दान -------अगर सुविधा हो तो पीपल के पेड़ के पास दीप दान करना चाहिए एक घडे में दीप जला कर रखे और पेड़ से बाँध दे । दुसरे घडे में पानी भर के उसकी पेंदी में एक छिद्र बना कर उसमे एक सूत की बातीइस प्रकार डाले की पानी बूंद -बूंद टपकता रहे फ़िर ये दोनों चीजो का सकल्प पूर्व विधि से करे ।
आकाश में दूध - जल दान -------इसी समय एक मिटटी का दिया या दोना में दूध और जल लेकर पूर्व इव्धि से समर्पित करे ।
भोजन -----सूर्यास्त से पहिले ही दाहकर्ता भोजन में से गोग्रास यानि की प्रेत का हिस्सा निकल क्र घर के बहर रख दे .साथ में जल भी रखे ।
गरुड पुराण ------अपनी सुविधानुसार गरुड पुराण का श्रवण अपने कुटुंब सहित करना चाहिए .इसको सुनने से भुत पुन्य एवं ज्ञान मिलता है ।
दशाह कृत्य ------इसके बाद दाह कर्ता दस दिन तक प्रति दिन पिंड का दान करे .पुरे बिधि सहित ।
गरुड पुराण के अनुसार स्थूल शरीर नस्त हो जाने पर एक अतिवाह्क सूक्ष्म शरीर यम मार्ग की यात्रा के लिए मिलता है जिसका निर्माण दस दिन में दिए जाने वाले पिंड दान से होता है । प्रथम पिंड सेसिर दुसरे से कान , नेत्र और नासिका , तीसरे से गला कंधे , भुजा तथा वक्ष स्थल , चोथे से नाभि ,, लिंग या योनी तथा गुदा , पंचम से जणू , जंघा तथा पैर , छठा से सभी मर्म स्थान , सातवाँ से सभी नाडियाँ , आठवां से दांत लोम आदि , नवम से वीर्य या रज तथा दसवां पिंड से शरीर की पूर्णता तृप्तता तथा क्षुद्वि परयय होता है । जब तक दस गात्र के दस पिंड दान नही होते तब तक मृत प्राणी को शरीर प्राप्त नही होता और वः वायु रूप में ही सिथित हो क्र प्रेत योनी को भोगता है पितृ में वः शामिल नही हो पता है। इस लिए दस गात्र के दस पिंड दान जरुर करना चाहिए

अस्थि संचय निमित्त छठा पिंड दान

दुसरे दिन , तीसरे दिन या उसी दिन तत्काल चिता शांत कर दह कर्तादक्षिण की और मुह करके पूर्व विधि से पिंड दान करे ।
पिंड बनाने से जो अन्ना बचा हो उसे उसे श्मशान वासी देवो को बली प्रदान करे ।
अस्थि संचय ----गायका दूध डाल कर अस्थियों को तर कर ले , मोन हो कर पलाश की दो लकडियो से अस्थिया अलग कर ले , सबसे पहिले सर की अस्थि से शुरू करे ओर अंत में पेर की अस्थि को चुने । ये सभी अस्थि कुश के उपर एक रेशम या तुस का कपडा बिछा क्र उस पर रखे । इनको सुगन्धित जल से तर कर उनमे थोड़ा सा स्वर्ण , मधु , घी , तिल डाल दे । फ़िर कपडे में बाँध कर मिटटी के बर्तन में रखे ।
घट फोदन -----इसके बाद चिता भस्म को जल में भा दे । चिता स्थली को साफ करे ।
इसके बाद एक व्यक्ति दाहकर्ता के कंधे पर एक घडा भर क्र रखे और आगे को जाते हुए चिता स्थान पर घडा गिरा दे फ़िर मुद कर न देखे और आगे चल दे । फ़िर सभी लोग स्नान करे मोन होकर । फ़िर स्नान के बाद तिल का दान दक्षिण की और मुख करके के ।
तत्वोंपदेश ----इसके बाद सभी लोग एक जगह बैठे या रुके और बाते करे , मानव तन एक दिन नष्ट होने वाला है । यह प्रथ्वी , जल , आकाश , वायु , अग्नि के संयोग से बना है । तो एक दिन उसी पञ्च भुत में मी जाएगा । इस तन को पाने का सबसे बडा लाभ है की ये कर्म सुधार योनी है । इस से हम भगवान को प् सकते है ।
अगर आप गंगा किनारे है तो उसी दिन अस्थि विसर्जित कर दे अन्यथा घर के बहर किसी पेड़ पर अस्थि कलश लटका देना चाहिए और दस दिन के भीतर गंगा में विसर्जन करना चाहिए । दस दिन के भीतर अस्थि गंगा में विसार्जन करने पर प्राणी को गंगा घाट पर मरने का फल मिलता है ।
शमशान से लोटकर -----इसके बाद बच्चो को आगे करके सभी घर की और चले पीछे मुद कर न देखे । दरवाजे पर थोड़ा रुके फ़िर निम् की पत्ते चबाये , आचमन करे , । जल , गोबर , तेल मिर्च , पिली सरसों , और अग्नि का स्पर्श करे । फ़िर पतथर पर पैर रख कर घर में प्रवेश करे .फ़िर भगवान का चिंतन करे ।
दह कर्ता के पालनीय नियम -----१ --पहले दिन किसी निकट सम्बन्धी , ( ससुराल या ननिहाल ) से भोजन प्राप्त करके कुटुंब सहित भोजन करना चाहिए । ये सुविधा न होने पर बाजार से खरीद क्र भोजन करे ।
२-- ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
३-----भूमि शयन करे।
४ -----सूर्यास्त से पूर्व भोजन स्वय बना कर खाए या एक ही हाथ का खाए ।हो सके तो नमक रहित खाए और पत्तल में खये । किसी को न छुए । और सबसे पहिले प्रेत के निमित भोजन का ग्रास निकल क्र घर के बहर रख दे फ़िर खाए ।
५------ प्रेत के लिए पिंड दान रोज करे । इन दिनों त्याग का जीवन बिताये ।
कुटुम्बियों के लिए -----ब्रह्मचर्य का पालन करे, । २ ----- मांस अदि न खाए , , शरीर तथा कपडो में साबुन न लगाये । , तेल न लगाये । ३ ----- मन्दिर में न जाए , पूजा न करे , देव मूर्ति का स्पर्श न करे , दान न दे न लें । किसी को प्रणाम न करे न आर्शीवाद दे । घर के देवी देवता की पूजा किसी कन्या से करा ले .४------ किसी घर नखाए न खिलाए
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Thursday, June 4, 2009

शव को धर से बहार निकलने के पहिले जावा या चावल के आटेमें घी मिला कर छः पिंड यानि की गोले बना लेना चाहिए । मृतस्थाने तथा द्वारे चत्वारऐ ताक्षर्य कारणात। विश्रामऐ काष्ट चयनऐ तथा संचयने च षत ।। ( गरुड़ पुराण प्रेत खंड १५ ? ३० - ३१ )। शव को पहला पिंड दान --दह कर्ताअपने दायें हाथ में त्रिकुश , जल और तिल लेकर बैठ जाए( जहाँ पर शव रखा है या नि की जो म्रत्यु स्थान है वहां पर )और आद्य गोत्र (यानि की जो भी मृत क का गोत्र हो )वःह बोल कर )प्रेतत्वनिवृत्ति पूर्वक शास्त्रोक्त फल प्राप्त अर्थंम भूमि आदि देवता तुष्ट अर्थंम च मृतिस्थाने शव निमित्त्क्म पिंड दान करिश्येत । इस पाकर बोल कर संकल्प का जल गिरा दे । इसी प्रकार पुनः जल लेकर संकल्प करके भूमि पर अंगूठे और तर्जनी के मूल से गिरा दे वहां पर दक्षिणगर तिन कुश बिछा दे । और दये हाथ में पिंड ले क्र बाये हाथ से दये हाथ का स्पर्श करे .
पुनः त्रिकुश जल और तिल लेकर और पिंड लेकर उन तीनो कुशो पर पिंड को रख
पंथ निमित्त्क दूसरा पिंड दान - दूसरा पिंड इसी प्रकार द्वार पर दे।
अब शव को कंधे पर उठा क्र चलते है राम का नाम लेता हुए ।
खेचर निमित्त्क तीसरा पिंड दान -- रस्ते में चोराहा आने पर शव को कंधे से उतर कर उत्तर की और सर करके रख दे .और दक्षिण की और मुंह करके तीसरा पिंड दान करे । जल छोडे विधि पुरी होने पर पिंड को उठकर अर्थी पर रख ले और भगवन का नम ले कर चल दे।
भूमि निमित्त्क चोथा पिंड दान -- शमशान के स्थ्हन पर पहुंच कर पुनः इसी रीती से पिंड दान करे ।
साधक निमित्त्क पांचवां पिंड दान --जहाँ पर चिता बनाना हो उस स्थान को गोबर मिटटी से लिप दे। भूमि से प्राथना करे । भूमि पर सभी मिल क्र चिता बनाए जो उत्तर से दक्षिण तक चार हाथ लम्बी हो चिता में तुलसी , चंदन , बेल , पीपल , आम , गुलर , बरगद शमी आदि यज्ञी लकडी जहाँ तक हो सके डाले द्विजो से चिता न बनवाये फ़िर शव को उस पर लिटा दे .सभी अंगो पर तुलसी आदि की लकडी रखे अंगो पर गी का लेप करे नेत्र , मुख आदि पर कर्पुर रखे शव को ओदायेगये चादर का कोना फाड़ कर शमशान के अधिपति को दे दे।कपड़ा सहित दह करे।
यहाँ पर पुनः बिधि सहित पिंड दान करे फ़िर भूमि से पिंड उठा कर शव के हाथ में रख दे और भगवान से प्राथना करे की प्रेत को मोक्ष प्रदान करे ।
फ़िर चिता के दाहिनी और किसी पात्र में अग्नि प्रज्ज्वलित करे और गंध , अक्षत , पुष्प आदि से अग्नि की पूजा करे । इसके बाद व्हिता पर जल , पुष्प अदि छिड़क कर मंत्रोउच्चारण सहित अग्नि को किसी सरपट आदि पर रख करदह करता चिता की तिन या एक परिक्रमा करे फ़िर सर की और से अग्नि प्रज्ज्वलित करे ।
कपाल क्रिया --शव के आधा जल जाने पर कपाल क्रिया करे बांस से शव के सर पर चोट पहुंचानी व्हाहिए औए फ़िर उस पर घी डालना चाहिए । फ़िर उच्च स्वर से रोना चाहिए । यहाँ पर आपके रोने से मृत प्राणी को असीम सुख मिलता है
एक और बैठ क्र सभी को संसार की नश्वरता का प्रति वादन करना चाहिए। ये संसार क्षण भंगुर हीहै जो आया है वः जाता है । हम सब तो भगवान की काठ पुतली है । भगवन सत्य है बाकि सब मिथ्या है । आदि वेइराग्य पूर्ण बाते करना चाहिए
चिता की सप्त समिधा --एक एक बिता की सात यज्ञी लकडियाँ लेकर दह करता एक परिक्रमा करके एक लकडी चिता में क्रव्यदया नमस्तुभ्यम कह कर डाले इस प्रकार सात परिक्रमा करे
इसके बाद कबूतर के बराबर का भाग अधजला जल में डालना चाहिए पुरा जलाना मना है
क्रमशःजय माता दी
देह त्याग के बाद के क्रत्य
देह त्याग के बाद के क्रत्य ॐ जे माँ म्रत्यु हो जाने पर प्राणी के कल्याण के कार्यों में लग जन चाहिए । शव ले जाने की सामग्री --१--बांसऔए बिछाने के लिए कुशासन या चटाई । २ --मॉल मल का २० मीटर सफेद कपड़ा , ( अर्थी पर बिछाने को , मीटर शव को पहिनने को , और दह करता को पहिनने को ) ३ -- सुहागिन महिला हो तो गोटा, चुनरी , सिंदूर , महावर , चूड़ी , मेहदी , हल्दी आदि । ४-- पुरूष को बंधने को सूत औए स्त्री को मौली का विधान है ये न मिलने पर मुंज की रस्सी । ५-- सजाने के लिए फुल माला । ६-- अबीर ,इतर, मिटटी की नाद छोटी सी , एक घडा ,एक थाली , लोटा , धुप , रुई , माचिस , घी , जनेऊ , नारियल , आदि ७-- शव के ऊपर डालने को मखाना बताशा , धन की लाइ ,पैसा आदि । पिंड दान के लिए ---जाऊ का आता ऐ किलो , तिल -१०० ग्राम मधु ,घी , कुश ,फुल, दोना पत्तल अदि । दह संस्कार के लिए ---देशी घी ,सामर्थ्य अनुसार ,कर्पुर , रल ,चंदन की लकड़ी , सम्र्थ्नुसार , पीपल बेल तुलसी की लकड़ी ,चिता भूमि को शुद्ध करने को दूध एक लिटर , । dahदह करता के लिए -- हाथ में जल , कुश , और तिल लेकर स्वयम के बल बनवाये फ़िर स्नान करे । शव का संस्कार --पवित्र हो कर मृत प्राणी के पासआए शव का सिरहाना उत्तर की अओर करे , स्नान के लिए नये घडे में जल भर कर गंगा जल दल क्र सभी तीर्थों का आवाहन करे , फ़िर उस जल से शव को स्नान कराए ,नये वस्र्ट से बदन पोंछ कर पुरे शरीर में गाय के घी में इतर , कर्पुर , कस्तुरी आदि सुगन्धित द्रव मिला कर लेप करे , नया वस्र्ट का कोपीन पहिना दे , जनेववाला हो तो पहिना दे , फुल , तुलसी की माला पहिना दे , माथे पर चन्दन लगा दे महिला सुहागन हो तो पुरा सिंगर करे । मुख, दोनों kaan दोनोंआँख , दोनों नाक में सोना डालें । सोना नहो तो घी की बूंद दल देन । अंगुली से लेकर सर तक शव को कपड़े सेधक् दे । तलवा खुला रखे , अर्थी पर रख कर मुज की रस्सी से बाँध दे , उपर से संभव हो तो राम नमी चादर या स्त्री हो तो चुनरी उदा दे ।ऊपर से फुल माला से सजा कर बजा बजा कर भजन कीर्तन के साथ अन्तिम यात्रा को ले जन चाहिए । ( गरुड पुराण एवं निर्णय संधू से ) रजस्वला स्त्री को शव नही छूना चाहिए ,।कबरोना चाहिए --मृत होने पर रोना नही चाहिए क्योंकि मृत प्राणी को रिने पर अपर कास्ट होता है । यह प्राणी की अन्तिम यार्ता है जिसमे वह स्वतंत्र नही होता यम् दूतों के बंधन में होता है । तो रोने वाले प्राणी के आँख नाक से जो आंसू और कफ निकलता है वह उस प्राणी कोविवश हो कर पीना पड़ता है और वह स्वर्ग से भी बंचित होता है .( याज्ञवलकय स्मृति से ) शोच मनस्तु सास्नेहां बंधवा सुह्रदसतथा । पतयन्ति गतं स्वर्गंमशरू पातेंन राघवः ।। ( बालमिकी रामायण ) ।१--जब घर से बहार शव को ले जाया जाए तो उठाते समयउच्च स्वर से रोना चाहिए । शव घर से बहर हो जाने पर बिल्कुल नही रोना चाहिए ।२--मर घट में कपल क्रिया के समय परिजनों को उच्चच स्वर से रोना चाहिए एसा करने पर मृत पानी को सुख प्राप्त होता है ।वह इन प्रेमशु कण स्वाद पाकर प्रफुल्लित हो जाता है और खुद हो कर अपनी यात्रा पर आगे बाद जाता है । (गरुड पुराण , प्रेत खंड १५ /५१ ) । देखा जाता है की लोग रो रो कर मीट पानी से पूछते है की आप मुल्हे भूल गए , किसके सहारे छोड़ गए , धोका दे गए आदि कहते है इन सब बातो से मीट पानी को अपर कास्ट की अनुभूति होती है । अथ एसा न कें । ३-- गंगा घाट पर रोने कण बिधान है । शव ले जाने के बाद भगवान के नम की चर्चा करनी चाहिए , स्मरण करना व्हाहिए । ॐज य माँ । क्रमशः ---

Wednesday, June 3, 2009

समय बहुत बलवान होता है। एक से एक दानी , बलवान , बैरागी , अनुरागी , सम्राट इस धरती पर आए , पर यहाँ अमरहो क्र कोई नही रह पाया । सभी को म्रत्यु रूपी महा यात्रा करनी ही पड़ी ।

Monday, June 1, 2009

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पञ्च धेनु दान
पञ्च धेनु दान अन्तिम समय साद गति की प्राप्ति के लिए और अन्तिम यात्रा बिना कष्ट के पूर्ण होने के लिए यम के कह्तों से बचने के लिए ये सभी विधान किए जाते है । जन्म लेने के साथ ही मनुष्य योनी में जन्म लेने वाले हर प्राणी पर तिन ऋण लग जाते है। देव ऋण --२ --पित्र ऋण --३ --मनुष्य ऋण । १ --ऋण प्नोद धेनु ---उपर्युक्त तिन ऋण के अतिरिक्त मनुष्य एनी ऋण भी ले लेता है । अथ इन सभीं रीनो के पाप को नष्ट करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए ऋणप्नोद धेनु का दान किया जाता हा २ -- पापापनोद धेनु ----जीवन के ज्ञात अज्ञात पापों से छुटकारा पाने के लिए पापापनोद धेनु का दान किया जाता है ।३ -- उतक्रान्तीधेनु ----अन्तिम समय में प्राणोंत्सर्ग में bahut कष्ट की अनुब्भुती होती है , तो उस कष्ट से बचने के लिए इस धेनु का दान किया जाता है । ४--वैतरणीधेनु -- म्रत्यु के बाद जब जीवात्मा को यम मार्ग से ले जाते है तो मार्ग में सिथित घोर वैतरणी नामक नदी को पार करने के लिए इस धेनु का दान किया जाता है । ५--मोक्षधेनु -- मोक्ष पाने के लिए इस धेनु का दान दिया जाता है ।
येसभी दान चाहे दस महा दान हो या पञ्च धेनु दान