Sunday, May 31, 2009
दस महा दान क्या है ----
ये सभी दान किसी पंडित को बुला कर ही करना चाहिय मंत्रो के उच्चारण सहित ही करना चाहिए । और दान के संकल्प का जल उसीपंडित के हाथ में देना चाहिए ; तभी संकल्प पुरा होता है । कोई भी पूजा छोटी , बड़ी,और मीडियम तिन प्रकार की होती है । पूजा अपनी सरधाऔर सामर्थ्य के अनुसार की जाती है .
१ --गोऊ दान ---अगर हो सके तो एक गो का ही दान करे , अन्यथा उसके मैप दंड के अनुसार रुपया लेकर संकल्प करे गोऊ दान के साथ दूध रखने का पात्र जरुर दे ।
२--भूमि दान --जिस चीज का दान देना हो वः चीज या उसके मूल्य का द्रव्य रखकर अक्षत , पुष्प ,जल के साथ अर्पण करे ।
--३--तिल दान --काले सफ़ेद तिल का दान करे ।
४--स्वर्ण दान ---सोने का दान करे ।( एक रवा , रत्ती या अपनी सामर्थ्य अनुसार ।
५-घी दान --घी का दान करे ।
६--वस्त्र दान --वस्त्र और उप वस्त्र के रूप में दो नए वस्त्र ब्राह्मण को दान करे ।
७ -- अन्न दान --गेहूं , चावल , चना , जवा ,और मुंग सहित पञ्च अनाज का दान करे।
८--गुड दान -- गुड का दान करे।
९ -- रजत दान --- चांदी का दान करे ।
१०-- लवन दान ---नमक का दान करें ।
ये सभी चीजो का दान प्रत्यक्ष दान करे या इच्छानुसार मुद्रा दान करे ।
Friday, May 29, 2009
पंद्रहवां संस्कार --मृतक संस्कार
जब मनुष्य का अंत समय आ जाता है तभी से यह क्रम चालू हो जाता है । जो आया है सो जाएगा । जीवन की समाप्ति म्रत्यु से होती है । जब हम कहीं भीयात्रा पर जाते है तो हमारे रस्ते का खाना, पीना, सोना, आराम का पुरा ख्याल करके व् व्यवस्था करके भेजा जाता है और खुशी - खुशी बिदा किया जाता है ।
इस प्रकार म्रत्यु तो हमारी महा यात्रा है उसका स्वागत हमको खुश हो क्र करना चाहिए ।
किसी ने कहा है -- जिन्दगी तो वेवफा है एक दिन ठुकराएगी , मौत महबूबा है अपने साथ ले कर जायेगी।
जाने वाले को हमें खुश हो क्र महा यात्रा पर भेजना चाहिए ।
स्कन्द पुराण में कहा गया है की ये जीवात्मा इतना सूक्ष्म होता है की जब वह शरीर से निकलता है tab उसे in इन चर्म चक्षु से नहीं देखा जा सकता है । यह जीवात्मा अपने कर्म फल के भोग भोगने के लिए एक अंगुष्ठ का अपरिमित सूक्ष्म ( अति इन्द्रिय शरीर धारण करता है ।
ब्रह्म पुराण में कहा गया है की --इसी सूक्ष्म शरीर से जीवात्मा अपने द्वारा किए गए अच्छे और बुरे करम भोगता हुआ यम मार्ग से यमराज के पास जाता है । यहाँ पर एक बात ध्यान विशेष ध्यान देने योग्य है की प्रथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो म्रत्यु के बाद अतिवाहक सूक्ष्म शरीर धारण करता है और उसी शरीर को यमके दूतों के द्वारा यम मार्ग से यमराज के पास ले जाया जाता है । एनी प्राणियों को सूक्ष्म शरीर नही प्राप्त हो ता , वह तो म्रत्यु के बाद नानातिर्यक योनियों के प्राणी वायु रूप में विचरण करते हुए पुनः किसी योनी विशेष में जन्म हेतु उस योनी के गर्भ में आ जाते है । और फ़िर व्ही भोग्मन शुरू हो जाता है । केवल मनुष्य अपने शुभ अशुभ कर्मों का निर्माण कर सकता है और उनका अच्छा बुरा फल इस लोक और परलोक में भोगता है ।
ॐ जाय माता दी ----आगे-
प्राणोत्सर्ग के समय क्या करें ------
जब मरनासन्न व्यक्ति हो तो उसे बार बार भगवान के नाम का उच्चारण करना चाहियऐ अगर आपने एक बार भी राम, कृष्ण , शिव , दुर्गा काली का नाम उससे उच्चारण कव दिया तो समझो आपने उसकी यात्रा को सफल बना दिया । इस लिए हमको हमेशा ही भगवन नाम के उच्चअरण को आदत डालना व्हाहिये ताकि अंत समय भी हम उनका स्मरण करते रहें ।
तुलसीदास जी ने लिखा है की --कोटि कोटि मुनि जतन करहिं , अंत राम कही आवत नाहीं ।
यह वह समय है जब आपके प्रयास से उसकी महायात्रा सफल होती है हो सकता है उसका कर्म बंधन से छुटकारा हो जाए । इसलिया परिजन आस पास का माहौल इश्वर माय बना देन .और उससे बार बार नम का उच्चारण कराएँ । मरणासन्न व्यक्ति को कुश बिछा कर निचे जमीं पर लिटा देन ।
। जमीं को गोबर गंगाजल से पवित्र करके उस स्थान पर तिल बिखेरde
। ।सम्भव हो तो नई या साफ़ धोई हुई सफ़ेद चादर बिछा दे . । उस पर की भी रंग का निशान न हो ।
यथा संभव गंगा जल , तुलसी का जल , तीर्थ का जल , गोमूत्र , गे का गोबर , कुश का जल सभी को जल में मिला कर या जो भी हो उसे मिलाकर उसे स्नान करा दे या गिले कपड़े से बदन पोंछ दे ।
- जनेऊ धारण करा दे
- तुलसी की जड़ की मिटटी लेकर उसके माथे पर या सम्पुरण शरीर में लगा दे । इससे सरे पाप नष्ट हो कर विष्णु लोक की प्राप्ति होती है ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है ।
- किसी भी तीर्थ की भस्म या मिटटी , गोपी चंदन लगा दे ।
- सर पर , मुंह में, हाथ में तुलसी दल रख दे । आस पास गमले सजा दे तुलसी के ।
- घी का दीपक जला दे
- गीता का या किसी भी ग्रन्थ का पाठ करें ।
- में बार बार गंगा जल या तुलसी जल डालते रहें।
- अगर किसी व्रत का उददापन रह गया हो तो पंडित को बुलाकर संक्षिप्त में मानसिक उददापन करा दे।
- पंडित से अपनी शक्ति के अनुसार दस महादान , या अष्ट महादान या गोऊ दान अवश्य करना चाहिए ।
- जमीं पर लिटाते समय उसका सर पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए ।
- ॐ जय माता दी ....अभी आगे है ----
- kisi bhi tirth
Thursday, May 21, 2009
हमारे संस्कार बारहवां से ----
बारहवां संस्कार --- गौरी गणेश पूजा , धानदरेती ,खलमाटी, देवपितर पूजा ---- ये कार्य क्रम शादी के पांचवें या तीसरे दिन से शुरू किए जाते है
गौरी गणेश पूजा --- इस दिन शुभ मुहूर्त में क्स्ल्श स्थापित करके विघ्न हरता गणेश जी की पूजा की जाती है । धुप दीप फूल फल मीठा नारियल सब कुछ चडाया जाता है। सभी कार्य निर्विघ्न होने की प्रथना की जाती है । माता गौरी की पूजा सोडश मातृका सहित की जाती है ।
धान दरेती ---घर के आँगन में सभी महिलाएं इक्कठी हो कर यह कार्य क्रम करती है । एक कुदाली ,एक चक्की, दो सूप, सिल बट्टा , चने की दाल, चावल, उड़द की दाल फूली हुई और पूजा की थाली । महिलाएं तैयार हो कर बैठ जाती है एक दुसरे को टिका लगाती है गोद में चावल बताशा ,व रुपया डालती है । दो महिलाएं आमने सामने बैठ कर सात बार चक्की चलती हैं औरउड़द की दाल पिसती है फ़िर दोनों दो सूप में से चने की दाल एक दुसरे को देते हुए पछोद्ती हैं। मगल गीत गाती है।
खल माँटी --- उसी समय सात बांस की टोकरी रखी जाती हैं और उनका टिका पूजन होता है फ़िर सभी पास की किसी खदान या बगीचे के कोने में जाकरघर की बडी महिला खदान व् कुदाल का पूजन करती है । अपने सरे पितरों , पूर्वजों को याद करके व् नाम लेकर उनको निमंत्रण दिया जाता है की आज आपके पोते पोती की शादी है आप आइये । फ़िर घर की लड़की या दामाद कुदाल से मिटटी खोदता है और पञ्च पञ्च देलाटोकरी में रख कर लाते हैं । घर आकर जहाँ चक्की रखी है वहीं रख देते है सभी को बताशे बांटते हैं । terhvan
तेरहवां खम्ब रोपण संस्कार ---दुसरे दिन मंडप का कार्य क्रम होता है । पूजा की थाली वाही होती है जो रोज ही कम आती है चारों कोने में गड़ने के लिए चार बड़ी लकड़ी लाते हैं और एक कपड़े में एक सुपाड़ी , हल्दी , कोयला , पैसा , चावल रख कर चार पोटली बनाते है फ़िर चारों खम्बोमें बंधते हैं और हल्दी से बिच में रंगते है । घर के दामाद या भांजे से बीच में बना हुआ खम्ब आता है उसे गदावाते हैं और नेग में रुपया देते है इसके बाद पुरा मंडप बना करउस पर जामुन व् आम के पत्ते से डंक देते है । फ़िर सात घडे में पूजा का पानी भर कर लाते है । फ़िर जिसकी शादी हो रही है उसे घर के अन्दर से हाथ में सात पुआ रख कर बुआ या दीदी लती है मंडप में पता पर बिठा कर तिन बार तेल चदते है और दो बार हल्दी लगते हैं। एक थाली में हल्दी घोल ली जाती है फ़िर पुरे शरीर में पञ्च महिलाएं लगाती है । उसके बाद सभी लोग एक दुसरे को हल्दी के हाथ पीठ पर लगते हैं । और एक दुसरे को हल्दी से रंग ते हैं । आज से जिसकी शादी हो रही है उसका एक सह बाला ( साथी ) हमेशा साथ होता है ।
इसके बाद कुल देवता की पूजा होती है जिसमे एक ही कुल के लोग शामिल होते है। जिसे मैहर पूजा कहते है ।
इसके बाद तीसरे दिन agr लड़की की शादी है to बारात के आने की तयारी करते हैं अगर लड़का की शादी होती है तो बारात ले कर जाने की तयारी करते हैं ।
चौदहवां संस्कार पाणिग्रहण संस्कार --- यह अति महत्व पूर्ण होता है जब जिस समय का मुहूर्त होता है उसी प्रकार से इसे करते हैं । बारात आती है । द्वार चार होता है मंडप के निचे वर वधु अपने - अपने माता पिता और परिवार वालों के सामने , समस्त नक्षत्र तारा गणों , सभी देवताओं तथा अग्नि देवता को साक्षी मान कर वेड मंत्रों के उच्चारण के साथ एक दुसरे को पति - पत्नी स्वीकार करते हैं जिसे पाणिग्रहण कहते है लड़की के माता पिता कन्या के हाथ पीले करके वर को कन्या का दान करते हैंजिसे कन्या दान कहते है ।इसके बाद बहु तथा बारात की बिदाई होती है।
पन्द्रहवां संस्कार कंकन छोड़ना --जब बहु दरवाजे पर आती है तो बजे गाजे से उसका स्वागत होता है वर वधु को पास पास खड़ा करके दोनों का निहारन या मुह देखा जाता है यह कम सास करती है बाद में सब देखते है aur नगर के देवी देवता के मन्दिर जाकर बहु का हल्दी का हाथ लगवाते है फ़िर घर के दरवाजे पर भी हरः लगाते है । फ़िर बहु देहरी पर रखे चावल के कलश को पैर से अंदर की ओर गिरा करpaani me ghuli hui हल्दी या कूम कूम की थाली में पैर रख कर अंदर प्रवेश करती है । फ़िर मंडप के निचे वर बधू दोनों बैठते है एक बड़ी परत में हल्दी घोल कर बहुत सा पानी भर दिया जाता है फ़िर सबसे पहिले वर बधू के हाथ में बंधा धागा ( कंकन ) एक हाथ से खोलता है फ़िर बधू दोनों हाथ से वर का कनकं खोलती है फ़िर वः दोनों धागा एक अंगूठी में बाँध कर उस परत में हल्दी के पानी में डूबा देते है और दोनों में जो पहिले प् लेता है उसे विजयी मानते है । इस प्रकार हमारे सभी संस्कार होते है और दोनों का नया जीवन शुरू होता है
Wednesday, May 13, 2009
हमारे संस्कार ---- आठवां से -----
नौवाँ विद्या आरम्भ संस्कार ----यह भी तीसरे या पांचवे साल में किया जाता है गुरु पूर्णिमा , बसंती पंचमी , अक्षय तृतीया या गंगा दशहरा को बच्चे को नए वस्त्र पहिना क़रपिता या दादा गोद में लेकर बैठते है चोक बना कर चौकी पर माँ सरस्वती की फोटो रखकर कलश स्थापित करके पंडित जी से पूजन, हवन करावे । स्लेट , पेन्सिल कापी भी रखे स्लेट पर स्वस्तिक बना कर पंडित से पूजन करावे । फ़िर बच्चे का हाथ पकड़ कर स्लेट पर ग गणेश का लिखावे । बच्चे को गुरु की आज्ञा माननेकी बात बतावे विद्या का महत्व बतावे । रोज स्कुल की बाते करके उसे स्कुल जाने को तैयार करे । एक या पॉँचब्रह्मण को भोजन करा कर दान देवे ।
दसवां उपनयन संस्कार या जनेऊ ----यह संस्कार ७,९,१३ ,या १५ साल मेहोता है इस में सब कुछ शादी जैसा होता है जैसे मंडप, मैहर, पिटर पूजन कुल देवता पूजन , अदि ये पंडित के द्वारा ही कराया जाता है । बहुत लोगों में यह संस्कार शादी के समय ही होता है जहाँ लड़के को ससुराल में जनेऊ का जोड़ा पहिना देता है और गायत्री मन्त्र भी सुना देता है इसे दुर्गा जनेऊ कहते है । हिंदू में यह संस्कार जरुरी है । अब बालक किशोर अवस्था में प्रवेश करता है ।
ग्यारहवां लागुन या फलदान ----- यह शादी की सबसे पहिली रस्म है। जिसे आजकल रिंग सेरेमनी कहा जाता है लड़की वाले अपनी सामर्थ्य अनुसार लड़के को कपड़ा फल मिठाई , अंगूठी चांदी का नारियल ,चांदी की थाली , घड़ी और रुपया भी कैश रखते है । सभी रिस्त्रदार आते हैं । वर को नए कपड़े पहिना कर चोकी पर बिठाते है बहिन या बुआ वर के पीछे रहती है । पंडित जी वर से कलश , गौरी गणेश का पूजन करते है फ़िर लड़की का भाई सामने बैठ कर वर का टिका करता है, माला फिनाता है वर को एक बड़ी थाली में रख कर रुपया , मीठा फल नारियल कपड़ा आदि देता है , थाली में लग्न पत्रिकाभी रखता है जिसमे शादी का कार्य क्रम लिखा होता है , फ़िर वर को पान खिलाता है दोनों गले मिलते है , नाच गाना बाजा फोटो खाना पीना आदि खूब धूम होतीहै ।
यहाँ एक बात ध्यान देने की है की लड़की वाले बांस की टोकरी जरुर लाते है कुछ भी भर कर , और लड़के वाले भी एक बांस की टोकरी में नीचे एक रुपया रख कर उसमे मीठा पुडी , लड्डू आदि भर कर लड़की वालों को देते है इस प्रथा को वंश बहोरा कहते है ।
गोद भराई ---- दूसरी और लड़के वाले भी लड़की को कपड़े ,एक दो ज्वेलरी ,फल मीठाmeva अदि लेकर लड़की के घर जाते है जहाँ कन्या को चोकी पर बिठाया जाता है । कलश रखा जाता है फ़िर सास जिठानी नन्द आदि उसकी गोद में सब कुछ रखते है । रुपया भी डालते है । लड़की वाले सभी को बिदाई में कपड़े आदि देते है ।
Tuesday, May 12, 2009
चोथा संस्कार से -----
माँ बच्चे को ले कर बाहरआँगन में आती है सूर्य को जल चडायाजाता है फुल अक्षत आदि से पूजन करके प्रणाम किया जाता है फ़िर बच्चे को सूर्य के दर्शन कराये जाते हैं, फ़िर पृथ्वीपर लिटाते हैं इस प्रकार बच्चे को दोनों की उर्जा मिल जाती है । मायके वाले कपड़े , मिठाई , मेवा फल आदि की भेंट लाते है । बच्चे को हाय , चन्द्रमा , चेन , कड़े ,पायल आदि लाते है । झुला भी लेट है जिसकी पूजा के बाद झूले का नेग करके बच्चे को
झूले में लिटाया जाता है ।
पांचवां संस्कार -- जलवा -या जल पूजा --- यह पूजा चालीस दिन में होती हे अब जच्चा की सूतक खत्म होतीहै इस दिन जच्चा तैयार हो कर कुँआ पर जाती है मंगल गन करती हुई महिलाये जाती है कुआँ का पूजन होता है । नन्द या नंदोई पानी का घड़ा भर कर जच्चा केसर पर रखते है। फ़िर घर के दरवाजे पर आकर देवर उस घडे को उतरता है और नेग भी लेता है ।
chhata अन्नप्रासन संस्कार ----हमारे यहाँ इस संस्कार का बडा महत्व है । इसके पहिले बच्चे को अन्न नही खिलते है ये सभी संस्कार पंडित से मुहूर्त पूछ कर ही करते है । यह तीन माह से लेकर छः माह के बीच होता है । इसे बुआ या मामा जी के द्वारा कराया जाता है जो बच्चे को कपड़ा , चांदी की कटोरी , चम्मच गिलास लती है कलश , गौरी गणेश पूजन होता है फ़िर दादा दादी बच्चे को गोद में लेकर चोकी पर बैठते है और मामा या बुआ चांदी की कटोरी से चम्मच में खीर लेकर बच्चे को सात बार चटाते है । गाना नाचना होता है । मीठी बनती जाती है । satvansa
satvan मुंडन संस्कार --- जन्म के एक साल या तीसरे साल के अंदर मुंडन होता है । मुंडन अपने अपने रिवाज के मुताबिक कुल देवी देवता के स्थान पर होते है । या किसी मन्दिर में होते है । चोक दल कर कलश रखे दीपक जलवें । नाइ की कतिरी में साफ़ पानी लेवे उसमे तांबे का सिक्का डाले दादी या माँ बच्चे को गोद में लेकर बैठ जावे बुआ अपने हाथ में आता की कच्ची रोटी ले क्रर बैठती है उसमे एक रुपया रखा जाता है और उसमे सरे बाल इकट्ठे किए जाते है फ़िर उसे गोल गोल करके सारे बाल अन्दर किए जाते है और फ़िर इस बाल वाले गोले को किसी भी नदी में दाल दिया जाता है मुंडन खत्म होने पर सर में हल्दी और घी लगते है ताकि इन्फेक्शन न हो । बच्चे का teeka करते है मिठाई खिलते है
Monday, May 11, 2009
दूसरा संस्कार --- जातकर्म संस्कार
बच्चा के जन्म लेते ही सबसे पहिले घड़ी देखते है फ़िर घर के बुजुर्ग व्यक्ति से एक गुड का गोला बना कर घी लगाकर पिंड दान के नाम पर गेहूं के पास रख देते हैं एसा करने से हमारी तीन पीडी के पितरतृप्त हो कर स्वर्ग चले जाते है और उसके बाद बच्चे का नाल काटते है।
इसके बाद जो घर में सबसे ज्यादा होनहार होशियार महिला या पुरूष होता है वह सोने की सलाई पर थोड़ा सा शहद दे कर बच्चे को चटाते हैकहा जाता है की एसा करने से उस व्यक्ति के गुन बच्चे में आते हैं ।
इसके बाद सूतक मन जाता है जो पाँच दिन का होता है ।
तीसरा छठी संस्कार ----लड़की की छठी पञ्च दिन में और लड़का की छठी छः दिन में करते है । इस दिन जच्चा बच्चा को स्नान करावे फ़िर गरम गरम हरिरा या दूध पिलावे दोनों की सिकाई करेजच्चा के यूज किए हुआसारे गंदे कपड़े गरम पानी औरदितल में दल कर साफ करें । बच्चे के कपड़ा हमेशा साफ रखें इस दी सफाई के बाद सूतक समाप्त हो जाती है । इसके बाद शामको जहाँ तेल का हाथ लगाया था वहां पर आते का चौक बना कर गेहूं के ऊपर तेल का दीपक जलावें और बच्चे को गोद में लेकर चौकी पर जच्चा बैठ जावे घर के बुजुर्ग महिला अपने कुल देवता की पूजा करें सास दीवाल में गी के छः हाथ लगावे और एक सिक्का भी चिप्कावे बिच में बच्चे की बुआ नये कपड़े पहिनती है काजल लगाती है महिलाएं मंगल गीत गाती हैं । कुल देवता की पूजा की जाती है छठी माता की पूजा होती है बच्चे को दीपक का उजला नही दिखाते हैं फ़िर मुंग की दल , ६ रोटी ,६ बड़ा , ६ पुडी ६ पकौडी (ये सभी भुत छोटे बनते है ) कड़ी चावल खीर पुआ एक थाली में रख कर कुला देवता को भोग लगते है और नन्द भाभी एक ही थाली में खाते है । बुआ को भतीजा होने ki खुशी में नेग मिलता है । दरवाजे पर बाजा बजते है नाच गाना होता है इस प्रकार आने वाले बच्चे का स्वागत होता है ओउर जन्म से ही उसमे संस्कार आने शुरू हो जाता है ।
शेष अगली बार -----
ओम जय माँ --
Thursday, May 7, 2009
हमारे सोलह संस्कार
वेसे हमारे वेदों में लिखा है की जन्मोत्सव , शादी व्याह आदि में कुछ संस्कार के छुट जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता है , परन्तु मृतक कर्म तो पिरन विधि से होना चाहिए । अन्यथा जिव आत्मा को मुक्ति नही मिलती है और वह kafi समय तक प्रेत योनी में भटकतारहता है । ये संस्कार सब से अंत में आता है । जिसकी जानकारी अंत में देगे .......
pahala sanskaइस प्रकार है
१- सतमासा संस्कार --( पुंसवन संस्कार ) यह सर्व प्रथम सक्स्कर है । जब मनुष्य माँ के गर्भ में होता है तब सातवें माह में यह मनाया जाता है । यह ससुराल में मनाया जाता है ।मायके से परिवार के लोग आते हैं जो गोद भरने के लिए फल , मीठा , नारियल कपड़े आदि लाते हैं शुभ मुहूर्त में होने वाली माँ को एक पटऐ पर बिठाया जाता है गौरी गणेश का पूजन होता है कलश जलाया जाता है । फ़िर मायके के लोग माँ भाभी बारी बारी से होने वाली माँ की गोद में मीठा , फल कपड़े आदि डालते है और होने वाले बच्चे को अपना रिश्ता होने वाली माँ केkaan में धीरे से बोल कर सुनते हैं । जैसे -कि मैं आपकी नानी बोल रही हूँ सदा खुश रहना ।
फ़िर सभी लोग मंगल गीत , सोहर गाते है दोलबजाते है सभी को खाना खिलते हैं मिठाई बांटते हैं ।
कहा जाता है कि इस समय बच्चा काफी परेशानी में रहता है उसे अपने पिछले जन्म का बार बार ख्याल आता है इस समय बच्चा कि स्थिति भी बदलती है तो उसकी परेशानी को दूर करने के लिए और उसका आगमन बिना किसी परेशानी के होने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं .वह गर्भ में रह कर भी सब कुछ अनुभव करता है ।
ॐ जय माँ शेष आगे -----