Tuesday, December 5, 2017

laghu kathayen

                           1- झंडे का दिन
सुबह के छः बजे थे सूर्य की किरणे चारों ओर अपनी स्वर्णिम आभा बिखेर रही थी। हवा मंद मंद चल रही थी। बगीचे में खिले फूलों की महक सारे वातावरण को तरोताजा बना रही थी। इस समय तक बहुत से लोग सुबह की सैर को निकल पड़ते हैं। मैं भी उनमें से एक थी। यह हमारी कालोनी से करीब दो किलोमीटर दूर का हिस्सा था। यहां पर बड़ी बड़ी मल्टियांें का निर्माण हो रहा है। जिस कारण वहां काम करने वाले बहुत से मजदूर लोग वहां पर अपनी अपनी झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन लोगों के कारण वहां पर चहल पहल रहती है। उनके बच्चे वहां पर गोला बनाकर खेलते रहते हैं।
  आज छब्बीस जनवरी का दिन था सर्दी बहुत थी, बाहर घना कुहरा था, सड़क पर इक्का दुक्का लोग ही  नजर रहे थे, ऐसे में मैं सुबह सबेरे ही उठकर षाल लपेट कर वाक पर चल दी, आज सब ओर एक ही नजारा था, बच्चे उत्साह में भरकर स्कूल जा रहे थे, हर ओर देष प्रेम के गीत सुनाई दे रहे थैंे भी इन्हीं नजारों में खोई चली जा रही थी तभी मैंने देखा कि एक बारह तेरह साल का लड़का साइकिल चलाता हुआ तेजी से आया ओर चिल्लाकर बोला-आओ आओ जल्दी आओ, सब लोग आओ ...... आज झंडे का दिन है। यह कह कर उसने अपने साथ लाया छोटा सा झंडा साइकिल में लगा दिया और तनकर खड़ा होगया बाकी बच्चंे उसके सामने आकर खड़े हो गए और वह जनगण मन गानेलगा। सभी बच्चे भी उसके साथ गाने लगे। यह देखकर बस्ती के लोग भी आकर खड़े हो गए। और उसका साथ देने लगे।  मैं मन में कौतुहल लिए उसे अब तक देख रही थी औेेेेेर अब मैं अपने आप को ना रोक सकी और उनके पीछे जाकर खड़ी होकर जनगण मन गाने लगी। मेरा मन उस बालक के देष प्रेम को देख कर अविभूत था। 
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                                    2-  इंसानियत
एक बूढ़ा मदारी था उसके पास संपत्ति के नाम पर केवल एक बंदर था जिसे नचा कर मिलने वाले पैसों से वह अपना पेट पालता था। वह मदारी उस बंदर को अपने बेटे की तरह प्यार करता था। उसके खाने पीने और सुविधा का पूरा खयाल रखता था। वह उससे अपने सुख दुख की बातें भी करता था, जब कभी मदारी की आंखों से आंसू बहते तो वह बंदर उसकी गोद में बैठ कर अपने हाथों से उसके आंसू पोछता था और फिर कला बाजी दिखा कर उसे हंसाने की कोषिष करता था।
   एक बार मदारी को बुखार गया और वह तीन चार दिन से बुखार में पड़ा तड़प रहा था, पर उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। बंदर का तमाषा ना दिखा पाने के कारण उसके पास खाने को भी कुछ नहीं था। वह दोनों ही तीन दिन से भूखे थे। मदारी ने सोचा बुखार में मैं तो बाहर जा नहीं सकता और मेरे साथ यह बानर भी भूखा प्यासा मर रहा है। मुझे इसके साथ एसा नहीं करना चाहिए। मैं इसे छोड़ दूं तो यह जंगल में चला जायेगा और अपना पेट भर कर आराम से जीवित रह सकेगा। यही सब सोच कर उसने उसे जंजीर से खोल दिया और उसके सिर पर हाथ रखा कर कहा-- जा आज से तू आजाद है। इस षहर से बहुत दूर जंगल में चले जाना और अपनी बानर जाति के साथ मिल कर रहना
 बंदर उछलता हुआ खुष हो कर बाहर चला गया और कुछ ही देर में छलांग भरता हुआ एक पेड़ पर जा बैठा। कुछ ही देर में उस पेड़ के नीचे से एक केला बेचने वाले का ठेला निकला। बंदर ने उसे कुछ देर तक देखा फिर कुछ सोचा और छट से पेड़ के नीचे आकर केले के ठेले पर कूदा और एक बड़ा सा केले का गुच्छा उठा कर फिर पेड़ पर चढ़ गया।
 केले वाला जब तक कुछ समझता तब तक बंदर जा चुका था वह कुछ भी ना कर सका और जल्दी ही वहां से अपना ठेला लेकर चला गया। बंदर कुछ देर बाद छलांग लगाता हुआ वापस मदारी के पास आया और उसकी गोद में उसने वह सारे केले रख दिये।बंदर और केला को देखकर मदारी सब समझ गया और आंखों में आंसू भर कर बोला-- तू फिर वापस इस बंधन में गया रे! इतनी इंसानियत तो इंसानों में भी नहीं है, अच्छा हुआ तू इंसान नहीं है।
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