आज करवा चोथका व्रत का दिन है । यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है । यह व्रत सुहागी स्त्रियाँ अपने पति की सलामती के लिए करती है । प्रातकाल ही उठकर स्नान करके सारा दिन निर्जला ( यानी की पानी भी नही पिया जाता है )रहते है । फ़िर रित को चाँद के निकलने पर उसकी पूजा करके उसको अर्ध देकर पति के दर्शन छन्नी में से करके पति के हाथ से पानी पि कर यह व्रत खोलती है । यह व्रत बहुत कठिन है ।
यह व्रत सत्यवान की लम्बी आयु के लिए सावित्री भी ने किया था , अपने पति की रोग मुक्ति के लिए यह व्रत रानी मदालसा ने भी किया था । अपनेपति को कुष्टरोग से मुक्ति दिलाने के लिए यह व्रत सती नर्मदा ने भी किया था जो महा सती अनुसुइया की सहेली थी उनहोंने ही यह व्रत करने की सलाह दी थी। रानी चंचला का उनके पति ने परित्याग कर दिया था फ़िर सप्त ऋषि
कहने का तात्पर्य है की इस व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है ।
व्रत का विधान --- (0इस दिन स्र्तियों को सोलह शंगार करके तैयार hona चाहिए )-
दो करवा या लोटा , एक थाली , उसमे पूजा की सारीसामग्री, सुहाग का सारा सामान , फ़िर शाम को घर के आँगन या छत पर आता से चौक पुर कर उसमे दोनों करवा को रखकर एक करवा में जल भरे और दुसरे करवा मेंलड्डू , भजिया ,चावल , पुडी , सबकुछ से भरना चाहिए फ़िर फ़िर गौरी माता और गणेश जी की की पूजा करना चाहिए फ़िर चाँद निकलने पर एक कटोरी में दूध लेकर दोनों हाथ से चाँद को दूध के छींटे दे और ये बोले की चन्द्र देव अर्ध लो, हमको सुहाग दो । एसा पञ्च बार करे फ़िरपानी से जल का अर्ध दे और एक छन्नी में जलता हुआ दीपक रखकर उसमे से चाँद के दर्शन करे और उसी छन्नी में से अपनेपति के दर्शन करे उनके टिका लगाये , पुर छुए और उनके द्वारा अपनी मांग में सिन्दूर लगवाये फ़िर पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलेफ़िर पति की माँ यानि की सासु माँ को पति के साथ में जो भी भेंट आप दे सकते हो जरुर दे चाहे वह एककपड़ा ही क्यों नहो इस व्रत में सासु माँ को भेंट देने का बहुत महत्व है व्रत तभी पूर्ण होता है । माँ को भेट देते समय जब आप पैर पड़ने को झुकते है तब माँ अपना आचल बेटे बहु के सर पर रखकर उनको सदा सुहागन रहने का आशर्वाद देती है .इसके बाद सभी मिल जुल कर कहना पीना खरे है ।